पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८११

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गाजिउद्दीन ने अहमद शाह को अंधा और कैद कर के जहाँदारशाह के एक लड़के को तख्न पर बैठाया और आलमगीर सानी उसका नाम रक्खा । गाजिउद्दीन ने अहमदशाह दुर्रानी के पंजाब के सूबेदार की मां को कैद कर लिया था । इस बात से अहमदशाह ने ऐसा क्रोध किया कि बड़ी भारी सैना लेकर सीधा दिल्ली पर चढ़ दौड़ा । गाजिउद्दीन बड़ी दीनता से उसके पास हाजिर हुआ. किन्तु वह बिना कुछ लिए कब जाता था । (१७४५) बल्लभगढ़ और मथुरा लूटी और काटी गई । दिल्ली और लखनऊ के लोगों से भी रूपया वसूल किया गया । अंत में नजीबुदौला को दिल्ली का प्रधान मंत्री बना कर अपने देश को लौट गया । गाजिउद्दीन ने मरहट्ठों से सहायता चाही और पेशवा का भाई रघुनाथ राव दिएली पर चढ़ आया । नजीबुद्दौला भाग गया और गाजिउद्दीन फिर वजीर हुआ । इधर मरहट्टों ने अहमदशाह दुर्रानी के लड़के नैमूर को पंजाब से निकाल कर वह देश भी अधिकार में कर लिया अर्थात् अब मरहठे सारे भारतवर्ष के अधिकारी हो गए । इसी समय में गाजिउद्दीन ने बादशाह को मार डाला और आप दिल्ली छोड़ कर भाग गया । अहमदशाह दुर्रानी इस बात से ऐसा क्रोधित हुआ कि बहुत बड़ी सेना लेकर फिर हिन्दुस्तान में आया । पेशवा ने यह सुन कर अपने भतीजे सदाशिवराव भाऊ के साथ तीन लाख सेना और अपने पुत्र विश्वास राव को उस से युद्ध करने को भेजा । मरहट्टों ने पहले दिल्ली को लूटा, फिर पानीपति के पास डेरा डाला । पहले कुछ सुलह की बातचीत हुई थी. किन्तु अंत का ६ जनवरी १७६१ को दोनों दल में घोर युद्ध हुआ, जिस में दो लाख से ऊपर मरहट्टे मारे गए और अहमदशाह की जय हुई । इस हार से मरहट्टों का उत्साह, बल, प्रताप, सभी नष्ट हो गए और साथ ही मुगलों का राज्य भी अस्त हो गया । शुजाउद्दौला ने आलमगीर के बेटे अलीगौहर को शाहआलम के नाम से बादशाह बनाया (१७६१) । यह दस बरस तक तो पहले नजीबुद्दौला के डर से इलाहाबाद में पड़ा रहा, फिर उस के मरने पर मरहट्टों की सहायता से दिल्ली में गया । थोड़े ही दिन पीछे गुलामकादिर नामक नजीबुद्दौला के पोते ने दिल्ली लूट कर बादशाह को पृथ्वी पर पटक कर छाती पर चढ़ कर कटार से आँख निकाल ली और हाथ बांध कर वहीं छोड़ दिया । महादजी सेंधिया यह सुन कर दिल्ली में आया और गुलामकादिर को पकड़ कर बड़ी दुर्दशा से मारा और अंधे शाह आलम को फिर से तख्त पर बैठाया । चारो ओर उपद्रव था । १८०३ में लार्ड लेक ने अंगरेजी सेना लेकर दिल्ली को मरहट्टों के हाथ से लिया और शाह आलम को पिनशन नियत कर दी । शाह आलम को अकबर सानी और उस को बहादुर शाह हुए । ये लोग साढ़े सोलह लाख की जागीर और पिनशन भोगते रहे । अंत को वह भी न रही । यों मुसल्मानों का प्रतापसूर्य आठ सौ बरस तप कर अस्ताचल को गया । फेंकत गरजे कनकपात्र रत नगजटित. जौन उगार। तिन की आजु समाधि पर, मूतत स्वान सियार ।। चे सूरज सों बढ़ि तपे, सिंह समान । भुज बल बिक्रम पारि निज, जीत्यो सकल जहान ।। तिन की पै काक । 'को' हो तुम अब 'का' भए, 'कहाँ' गए करि साक ।। ।। इति ।। आजु समाधि बैठयो पूछत

fuck बादशाह दर्पण ७६७