पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८२

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हाय वडोई हियाय करें। बेधि वेधि उठत विसीले नैन-बान मेरे. अजौ तन तजिकै न जाना जगाओ मोहि हिय में कंटीली मौह करकि करकि उठे।१३ हा हा मेरे प्रान निरसज्ज नुम पूरे हो ।१८ जा दिन लाल बजावत वेन चानक प्राव कड़े मम द्वारे । कुवजा जग के कहा आहर है नंदलाल ने जा उर हाथ धर्यो । हो रही ठाढ़ी अटा अपने लखि के हंसे मो तन नद-दुलारे। लाजि के भाजि गई 'हरिचंद' हौं मथुरा कहा भूमि की भूमि नहीं जह भौन के भीतर भीति के मारे । जाय के प्यारे निवास करो। ताही दिना ते चवाहनहूँ मिलि 'हरिचंद' न कार को दोष कछ मिलिह सोई भाग में जो उत्तयो । हाय चपाय के चौनंद पारे ।११ | सबको जहाँ भोग मिल्यो वहाँ हाय बब में अब कोन कला पसिये पियोग हमारे ही बांट परयो ।१४ बिन यात ही चौगुनो चाय करें। रोकहि जो तो अमंगल होय श्री अपराध विना 'हरिनंद व हाय चयाइने घात कदाप करें। प्रेम नसे जो कहे पिय जाइए। पोन मो गौन कर ही लरी पर जो कहें जाहु न तो प्रभुता जो करुन कहें तो सनेह नसाइए । चौ सपनेहुँ मिले नंदलाल ती जो 'हरिचंद' को तुमरे बिन जी सौतुख मैं ये चषाव करें ।२० न तो यह क्यों पतित्राइए। आजु कुन मंदिर में छके रंग दोऊ बैठे. तासों पयान समे तुमरे हम का केलि कर लाज छोडि रंग सों जहकि जहकि । कहै आप हमें समझाइए ।१५ सखीजन कहत कहानी 'हरीचद' तहाँ आयु सिंगार के केलि के मंदिर नेह भरी केकी कीर पिक सी चहकि चहकि । मेटी न साथ में कोऊ सहेली । एक टक बदन निहारें बलिहार ले ले, धाय के चूमै क्यों प्रतिबिंब गाढ़े भुज भरि लेत नेह सौ लहकि लहकि । कयो कहे आपुहि प्रेम-पहेली। गरे लपटाय प्यारी बार बार चूमि मुख. अंक में आपने आपै लगै 'हरिचंद जू' प्रेम भरि बातें कर मद सों अहकि बहकि ।२१ मी कर आप नवेली। आजु कुंज-मंदिर अनंद भरि बैठे श्याम, प्रीतम के सुख में प्रिय-मैं भई आए ने लाला के जान्यो अकेसी ।१६ धन घहरात बरसात होत जाल च्यों ज्यो. श्याम संग रंगन उमंग अनुरागे हैं। सोई बने सब मंजुल कुज त्यौही त्यो अधिक दोऊ प्रेम-पुज पागे हैं। आगीन को भीर जहां अति हेली। 'हरिचंद' अलके कपोल पै सिमिटि रही, साउ अनेक सजे सुख के 'हरिचंद जू' बारि बुंद चुअत अतिहि नीके लागे हैं। त्यो ही खरी हे सहेली। भीजि भोति लपटि लपटि सतराइ खेऊ, सोई नई रतियाँ रति की पिय नील पीत मिलि भए एक रंग वागे है ।२२ सोई कहे दिग प्रेम-पहेली। बज के सब नांव घरे मिलि ज्यौं त्यौं सोचत सो सूख सोई भई तिय आए तेलाल के जान्यो अकेली ।१७ बदाइके त्यो दोऊ चाय करें। 'हरीचंद हैसें जिसनो सबही तब तो बखानी निज बीरता प्रमानी के के तितनी दृढ़ दोऊ निभाव करें। प्रेम के निबाह मारे गरय गहरे हो । सुनि के चहुंचा चरचा रिसि सों जान सों पिया के कस्यो प्रथम पयान 'हरि- परतच्छ ये प्रेम-प्रभाष करें। हत दोऊ निसंक मिले बिहरै उत हाय प्राननाच-बिनु भोगत अनेक विद्या क खोई सुख आसा लागि अब तो मजूरे हो। चौगुनो लोग चवाव करें ।२३) चंद' अब बैठे कित दुरि दुरि बुरे हो। Home मिलि गाँव के नांव धरौ सवही भारतेन्दु समग्न ४२