पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८३

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नहुँचा लखि चौगुनो चाय करी । रसह सब भांति नसाइहै। सब भाँति हमें बदनाम करो आइहो होही उत्ते 'हरीचंद कदि कोटिन कोटि कुदाय करो। मनोरथ आपको कुच पुराहहै । 'हरिचंद' जू जीवन को फल पाय अंक न वाट में लाइए जू कोउ देखि चुकी अब लाख उपाय करौ। जो लेह कलंक लगाइहै ।२९ हम सोवत है पियअंक निसक मारग प्रेम को को समुझे 'हरिचंद' नपाइने आओ चषाव करी ।२४ यवारय होत यचा है। व्याकुल हो तड़पी बिनु पीतम लाभ कछन पुकारन में बदनाम ही कोऊ तो नेक दया उर लायो । होन की सारी कया है। प्यासी तजी तन रूप-सुधा बिनु जानत है जिय मरो भली विधि पापिन पी को पपीहे पिजाओ । और उपाय सबै बिरथा है। जीअ मैं हौस कहूँ रहि जाय न वावरे है बज के सगरे मोहि हा 'हरिचंद' दोऊ उठि धाओ । नाहक पूछत कौन विधा है ।३० आवे न आवे पियारो अरे कोऊ हाल जिय पै जु होइ अधिकार तो विचार कोजे तो जाइ के मेरी सुनाओ लोक-लाज भलो घुरो भले निरधारिए । | जानत ही नहीं ऐसी सखी इन नैन श्रौन कर पग सबै पर-बस भए मोहन जैसी करी हम सो दई। उतै चलि जात इन्हे कैसे के सम्हारिये । | होत न आपने पीअ पराए को यह 'हरीचद' भई सब भाँति सो पराई हम बोलनि साँची अरी भई। इन ज्ञान कहि कहो कैसे के निवारिए । हा हा कहा 'हरीचंद' करौं विपरीत मन में रहै जो ताहि दीचिये बिसारि मन सबै विधि ने हम सों ठई । आपे बसे जामें ताहि कैसे के बिसारिए ।३१ मोहन वै निरमोही महा र नेह होते न लाल कठोर इते पु पे बढ़ाय के हाय दगा दई ।२६ होते कई तुमहं बरसानियाँ। जानि के मोहन के निरमोहहि गोकुल गाँव के लोग कठोर करे नाहक बैर विसाहि बरें परी । छत होय में मारि निसानियाँ । त्यौं 'हरिचंद' विगारि के लोक यौं तरसावत ही अवलागन को मुख सो बेद की लीक भले निदरें परी । देखिये को दधि-दानियाँ। आपुनि ही करनी को मिल्यो फला दीनता की हमरे तुमरे निरदैपनद् तासो सबै सहते ही सरे परी । को चलेंगी कहानियाँ ।३२ यामैन और को दोष का सखि बेनी सी बचाने कषि व्याली काली काली आली चूक हमारी हमारे गरें परी ।२७ तिन सबहु को प्रतिपाली अहो काली है। नेह लगाय लुभाय लई पहिले | ताही सों उताल नंदलाल बाल दि जल सब ही सुकुमारियाँ । नाथ्यौ जाय ताहि चाहि उपमा न चाली है। तहाँ हरिचद' सबै गाँव के तमासे लगे चिलाय करी मनुहारियाँ । तिन के अमृत तुइ कीनी खूब ख्याली है। सो 'हरिचंद' जुदा हो बघि ज्योही ज्यों नचत प्यारी राधे तेरे इग दोय छलसों ब्रज-बाल विचारिया। त्यौं ही त्यों नचत फन पर बनमाली है ।३३ वाह जू प्रम निबाहयो भने नैन लाल कुसुम पलास से रहे है फूलि बलिहारियां लालन चे बलिहारियाँ ।२८ फूल-माल गरें बन मालरि सी लाई है। मेरी गलीन न आइए लालन भंवर गुंजार हरि-नाम जो उचार तिमि यासों सबै तुमही लखि जाइडे । कोकिला सो कुहुकि वियोग राग गाई है 'प्रेम तो सोई छिप्यो जो रहे प्रगटे 'हरीचंद' तजि पतझार घर-बार सबै Repk प्रम माधुरी ४३ 6 बृज की बेनु बजाय बुलाय रमाय हंसाय