पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८४०

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बोला- आदरणीय अली की मृत्यु का समाचार परम धार्मिक सुप्रसिद्ध अली मुसलमान धर्म के प्रवर्तक हज़रत महम्मद के जामाता और शीआ संप्रदाय के पहिले इमाम (आचार्य) थे । हज़रत महम्मद के लोकांतर गमन पीछे मुसलमान धर्म की स्थिति और उन्नति अली के ही ऊपर निर्भर थी । जैसे भक्तिभाजन इंसा को उन के शिष्य जूडा ने विशति मुद्रा के लोभ से शत्रुहस्त में समर्पण कर के वध किया था वैसे ही इनमुलज़म नामक एक व्यक्ति ने एक दुश्चारिणी नारी के प्रलोभन में उसकी' कुमंत्रणा से स्वीय धर्माचार्य अली को स्वयं करवालाघात से निहत किया । यह उससे भी भयंकर व्यापार है । इब्नमुलज़म के भाव चरित्र की चंचलता देख कर पहिले ही उस के ऊपर अली का संदेह हुआ था । एक दिन इब्नमुलज़म ने अली को एक उत्कृष्ट सामग्री उपहार दी थी । अली उस उपहार के प्रति अनादर प्रदर्शन कर के बोले कि हम तुम्हारे इस उपढौकन ग्रहण में नहीं प्रस्तुत हैं ; तुम परिणाम में हम को जो उपढौकन प्रदान करोगे उस के लिए हम विशेष चिंतित हैं । इस के कुछ दिन पीछे अली शिष्यमंडली के साथ कुफा नगर में उपस्थित हुए । वहाँ इनमुलज़म ने कुत्तामा नाम की एक दुश्चरित्रा विधवा युवती के सौंदर्य से मुग्ध होकर उस से परिणय-अभिलाषा प्रगट की । कुत्तामा ने उसे प्रलोभन जाल में आबद्ध कर के कहा - हमारे तीन पण हैं सो पूर्ण करने से हम तुम्हारे साथ व्याह में सम्मत हैं । एक सहस्र दिरहम (ताम्रमुद्रा विशेष), एक जन सुगायिका सुंदरी दासी और मुहम्मद के जामाता अली का बघसाधन । यह सुन कर इब्नमुलजम पहिले दोनों पण कठिन नहीं हैं वह संसाधन कर सकेंगे. किन्तु तीसरा पण गुरुतर है इस के संसाधन में हम अक्षम हैं । कुत्तामा बोली – शेषोक्तपण ही सब में प्रधान है, अली हमारे पितृकुल का शत्रु है, उसका प्राणसंहार बिना किए कोई भाँति विवाह नहीं हो सकता है । दुरात्मा इनमुलज़म उसका सुदृढ़ पण देखकर उस में भी सम्मत हुआ एवं विषाक्त तीक्ष्ण करवाल के द्वारा गुरु की हत्या करने का सुयाग देखने लगा । एक दिन निशीथ समय में अली कूफा की जामा मस्जिद के दरवाजे पर खड़े होकर नमाज में प्रवृत्त है, उस समय सुयोग समझ कर अतर्कित भाव से उस ने अली के सिर में एक आघात किया । अली आघात पाकर चिल्लाकर भूतलशायी हुए । शोणित-स्रोत से मस्जिद प्लावित हो गई। उनके आहत मस्तक से मस्तिष्क उभिन हो कर गिरा । दुरात्मा इब्नमुलज़म उसी क्षण धृत हो कर बंदी हुआ । पीछे उस ने दुष्कर्म का समुचित प्रतिफल भोग किया । अली ने दो दिवस विष की विषम यंत्रणा भोग कर के बंधुवर्ग को शोकसागर में मग्न करके परलोक गमन किया । मृत्युकाल में स्वीय प्रियतम पुत्र हसन को यह अनुमति दिया कि हमारा देह निशीथ समय में किसी निभृत स्थान में निहित करना, वही कार्य में परिणत हुआ । जब हसन पितृदेह भूमि निहित कर के लौटते थे उस समय एक व्यक्ति के रोने का शब्द सुन पड़ा । वह क्रंदन को लक्ष कर के वहाँ उपस्थित हुए. देखा कि एक दरिद्र अध वृद्ध आकुल हो कर रो रहा है । हसन ने रोने का कारण पूछा, तो वह बोला कि प्रति दिन रात को एक महापुरुष आकर हम को आहार देते थे और सुमिष्ट वचन से परितोष करते थे । आज तीन दिन से वह नहीं आते हैं और वह मधुर वचन नहीं सुनने पाते हैं, हम अनाहार हैं । हसन ने पूछा-उन का नाम क्या है ? अंधा बोला - उन्होंने हम को अपना परिचय नहीं दिया । परिचय पूछने से वह कहते थे, हमारे परिचय से तुम्हारा कोई प्रयोजन नहीं है. तुम हमारी सेवा ग्रहण करो । उनका कंठस्वर ऐसा था, वह अल्ला अल्ला की सदा ध्वनि करते थे । हसन अंधे की बात से जान गए कि वह महापुरुष उनके पिता थे । तब अनुपात कर के बोले कि आज वह महात्मा परलोक सिधारे हैं । अभी उनकी अंत्येष्टि क्रिया समाधान करके हम चले आते हैं । वृद्ध यह सुन कर शोक से मूच्छित होकर गिर पड़ा । पीछे रोते रोते तुम लोग हम को अनुग्रह कर के उनकी पवित्र समाधि भूमि में ले चलो । हसन हाथ पकड़ कर वृद्ध को वहाँ ले गए। वृद्ध ने वहाँ शोक और अनाहार प्राण त्याग किया। एक दिन किसी विपथगामी ईश्वरविरोधी व्यक्ति ने परम प्रेमिक अली से पूछा था कि हे ज्ञानवान अली ! गृह और उच्च प्रासाद शिखर पर भी ईश्वर तुम्हारे रक्षक हैं, यह तुम स्वीकार करते हो ? अली बोले "हा. शैशव में, यौवन में, सर्वक्षण सर्वस्थान में वह हमारे प्राण के रक्षक हैं ।" यह बात सुन कर वह बोला, "तुम अपने को, इस अट्टालिका पर से गिरा कर ईश्वर तुम को रक्षा करते हैं, इस विश्वास की पूर्णता प्रदर्शन करो, तब तुम्हारे विश्वास का हम विश्वास करेंगे और तुम्हारी ईश्वरनिष्ठा प्रमाण युक्त होगी । तब अली बोले celor भारतेन्दु समग्र ७९६ बोला- "