पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५७

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इन मंत्रों से करना । पहिले द्वादशाक्षर से फिर वासुदेवायनमः स्वाहा, नारायणाय.. भाधवाय.. गोविन्दाय. विष्णवे., मधुसूदनाय., त्रिविक्रमाय., वामनाय.. श्रीधराय.. ऋषीकषाय.. पद्मनाभाय.. समादगय.. उपन्द्रा य. वासुदेवाय., अग्निरुद्धाय.. अच्युताय. अनन्ताय., गदिन.. चक्रिणे.. विश्वक्सनाय.. वकंटाग. जनार्दनाय. मुकुन्दाय., अधोक्षजायनमः स्वाहा इन मंत्रों से होम करके दक्षिणा, भूयसा-दक्षिणा, आचार्य-क्षण शय्यादानादिक करके इस मंत्र से प्रार्थना करना । त्वन्देवि मेग्नतो भूया तुलसी देवि पार्यतः । देवित्वं पृष्ठतो भूयास्त्वदानात् मोक्षमाप्नुयाम् ।। विवाह के समय स्त्रियाँ गीत गावें । इति तुलसी विवाह । इस एकादशी को व्रत करके रात को जागरण करना । इस रात को जागरण का. दीपदान का वा पुण्य है । जो इस एकादशी को सोमवार और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र हो तो बड़ी फलनात्रा हा । इसी दिन स भाष्म पंचक का व्रत करना । १०८ द्वादशाक्षर मंत्र जप करके भगवान को पंचामृत स्नान कराके 'ॐ विष्णवनमः' इस मंत्र से १०८ आहुति देकर व्रत करना, पृथ्वी पर सोना. भीष्म तर्पण करना । पहिला दिन तुलसी स चरण पूधन करके गोबर प्राशन करना, दूसरे दिन विल्वपत्र से जाँच की पूजा करके गामूत्र प्राशन करना. तासर दिन भंगरथा से नाभि-पूजन करके दूध प्राशन करना, चौथे दिन कनैल से कंधा पूजन करके नहा प्राशन करना. पांचाए दिन विधि पूर्णमासी की विधि में देखो । इसी दिन मत्स्य भगवान को घर पर रस के स्वर्ण की मार्त बनाकर पूजा करना भी किसी का मत है। पूजा करके इस मंत्र से घड़ा न कर देना । जगद्योनिर्जगद्गपो जगदादिरनादिमान । जगदाघो जगदीजो प्रीयतां मे जनाईन ।। अथ कार्तिक शुद्धा १२ - यह मन्वंतरादि है । इसमें दीपदान, प्रातः समय नीराजनादिक करना । अथ कार्तिक शुद्धा १४ -- इसका नाम चतुर्दशी है । यह परम पुण्य दिन है । इसमें स्नान-दानादिक करना । इसा चतुर्दशी में ब्रहमकूर्चक नत और पाषाण होत है । इसमें विश्वेश्वर का दर्शन और पूजन होता है । इसमें रात को जागरण करना और कार्तिक का उद्यापन करना । अथ कार्तिक शुदा १५ - यह बड़ी पवित्र तिथि है । इसम जो विशाखा के सूर्य और कृत्तिका के वन्द्रमा हों तो पद्मक, नामक बड़ा पवित्र योग हो । इसमें पुष्कर-स्नान वा श्री यमुना स्नान वा श्रीगंगा-स्नान करके गोदान करना । इसमें जो भरणी, कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र हों तो बड़ा फल है । इसी पूर्णिमा में मत्स्य जयन्ती मत्स्य भगवान का पूजन करके दानादिक करना । इसी में सांझ को त्रिपुरोत्सव करना । साँझ को इस मंत्र से दीपदान करना - कीटाः पंतगा: मशकाश्च वृक्षाः जले स्थले ये विचरन्ति जीवाः । दृष्ट्वा प्रदीपं नव जन्म भागिनो भवन्तु नित्यं श्वपचाश्च विप्रा । । इस पूर्णिमा को कार्तिकेय का दर्शन करना । यह मन्वादि भी है । इसमें नक्तवत वा उपवास करना । सांझ का कृत्तिका का पूजन करना । मंत्र - शिवायैनमः, सम्भून्यनमः, प्रीत्यैनमः, संनत्यैनम अनुसूयायैनमः, क्षमायैनमः, कर्तिकेयायनमः, खंगिननमः, वरुणायनमः, हुताशनायनमः । इन मंत्रो से कृत्तिका और कार्तिकेय का पूजन करना । पूजा करके क्षीरसागर दान करना । चौबीस अंगुल का क्षीरसमुद्र बना कर गऊ का दूध भर कर सोने की मछली और मोती का आँस बनाकर दान करना । जा एकादशी का व्रत न समाप्त किया हो ना कार्तिक व्रत इस मंत्र से समाप्त करना । इदं वनं मयादेव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो । न्यून सम्पूर्णतां यातु त्वत् प्रसादाचनाईन ।। इसी पूर्णिमा में नील वृषभ दान करना और इसी में संतान व्रत. राशि वन और मनार्थ पूर्णिमा व्रत होता है। इसी पूर्णिमा में चातुर्मास के व्रत समाप्त करना । उस व्रत के दान लिखते हैं । नक्त व्रत में दो वस्त्र दान करना । एकान्तर उपवास में गऊ । भू-शयन में शय्या । एक बेर खाने से गऊ देना । जो अन्न छाड़ा हा तो वह सोने का बनाकर देना । कृच्छ किया हो तो दो गऊ देना । शाकाहार किया हो वा दूध छोड़ा हो वा द्ध पीता हो वा और कोई गोरस छोड़ा हो तो गऊ देना । ब्रहमचर्य लिया हो तो सोना देना । पान छोड़ा हो तो दो वस्त्र MOX0*** कार्तिक नैमित्तिक कृत्य ८१३