पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८५८

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देना । मौन लिया हो तो घी का घड़ा, दो वस्त्र और घंटा देना । जो नित्य रंग से मंदिर में स्वस्तिकादिक बनाते हो तो गऊ और सोने का कमल देना । दीपदान में दीए और दो वस्त्र देना । गऊग्रास देते हों तो गऊ और बैल देना । पृथ्वी पर भोजन करता हो तो काँसे की थाली और गऊ देना । सौ फेरी देते हों तो वस्त्र । अभ्यंग छोड़ा हो तो तेल का बड़ा । केश न बनवाया हो तो मधु, चीनी, सोना । गुड़ छोड़ा हो तो ताम्र का पात्र और गुड़ और सोना देना । ऐसे ही जिस वस्तु को छोड़ा हो वह स्वर्ण समेत देना । जो लाख तुलसी चढ़ाया हो तो उद्यापन करना । साँझ को इस मंत्र से दीपदान करना । नमः पितृभ्य: प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे । नमो याम्याय रुद्राय कान्ताय पतयेनमः । । इस मंत्र से दीपदान करना । यह पूर्णिमा परम फलदात्री है । इसमें कुछ सुकृत हो सो करना । भीष्म पंचक का व्रत इसी दिन समाप्त करके कालपुरुष का दान करना, होम करना । यह तिथि श्री राधिकाजी को बहुत प्यारी है, इससे वैष्णवों को इस तिथि में श्री राधासहसनामपाठ,, श्री राधिका-मंत्रजप और श्री राधिका- पूजन करना । इसी पूर्णिमा को गोलोक में श्री ठाकुर जी ने श्री राधिकाजी का पूजन किया था और उस समय श्री महादेव जी ने ऐसा गान किया कि श्रीराधिकाजी सहित भगवान द्रव हो गए । इससे इसी पौर्णमासी को गंगाजी का जन्म है, अतएव इस दिन गंगा स्नान का बड़ा फल है और तुलसी का भी जन्म दिन यही है, यह देवी पुराण में लिखा है. इससे इस तिथि में तुलसी पूजन और भगवान को तुलसी समर्पण की मुख्यता है । विशेष कहाँ तक कहें. यह कार्तिक ऐसा पवित्र महीना है. इसमें स्नान, दान, जप, तप व्रत, जागरण, दीपदान इत्यादि सब कर्म अक्षय होते हैं। दोहा प्राणनाथ-पद-रज सुमिरि धारि हृदय आनन्द । परम प्रमनिधि रसिक बर बिरची श्री हरिचन्द । प्राणपियारे प्रमनिधि प्रेमिन-जीवन-प्राण । तिनके पद अरपन कियो यह कारतीक विधान ।। इति श्री RO भारतेन्दु समग्र ८१४