पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८६२

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कुलानां शतमुहृत्य विष्णुलोकं ब्रजेन्नरः ।। २६ ।। यह कार्तिक का मासोपवास व्रत अत्यंत पवित्र है । इस की विशेष विधि व्रतार्क में लिखी है। कार्तिक का माहात्म्य सूचन करके अब कुछ उसके नियम लिखे जाते हैं जिस से विदित हो कि कार्तिक व्रत कब से करना और किस किस वस्तु का त्याग करना इत्यादि । कार्तिक स्नान आश्विन सुदी ११ एकादशी से प्रारंभ करना इसके वाक्य ऊपर लिख आए हैं। यथा स्कान्दे तथा ब्रहमपुराणे च वैष्णवं वैष्णवानां यद्वतंविष्णुपदप्रद । आश्विनस्यासितेपक्षे एकदश्यां द्विजोत्तमैः । वैष्णवैः कल्पनापूर्वम्प्रारम्भोस्य विधीयते ।। २७ ।। विष्णुपद का देने वाला यह वैष्णवों का परम वैष्णव व्रत कुँवार सुदी एकादशी से वैष्णव लोगों को कल्पनापूर्वक प्रारंभ करना चाहिए तथा कार्तिक में खाने पीने का संयम और ब्रह्मचर्य तो अवश्य ही करना चाहिए। प्रमाणं नारदीये अव्रतेन क्षतेद्यस्तु मास दामोदरप्रियं । तिर्यग्योनिमवाप्नोति नात्र कार्याविचारणा ।। २८ ।। तथा काशीखंडे ऊजें यवान्नमश्नीयाद् देवान्नमथवा पुनः । वृन्ताकं शूरणं चैव' शूकशीवीश्च वर्जयेत् ।। २९ ।। स्कान्दे कार्तिके वर्जयेत्तद्विदल बहुबीजकं । माष मुद्ग मसूरांश्च चणकाँश्च कुलत्थकान् ।। ३० ।। कार्तिक का महीना जो लोग बिना व्रत के बिताते हैं वे पशु योनि पाते हैं । कार्तिक में यव और पवित्र हविष्यान्न खाना और भंटा, सूरन और सेम इत्यादि नहीं खाना । कार्तिक में द्विदल, बहुत बीयावाली वस्त. उड़द, मोट, मसुरी, चना और कुलथी इत्यादि खाना । तथा नारदीये स्कान्दे च कार्तिके वर्जयेत्तैलं कार्तिके वर्जयेम्मधु । कार्तिके वर्जयेत्कांस्य कार्तिके शुक्लसन्धितं ।। ३१ ।। कार्तिक में तेल, मधु, कांस्यपात्र में भोजन, बासी अन्न, और खारे शाक ये सब वर्जित हैं। कार्तिक के व्रत में ब्रह्मचर्य और हविष्यभोजन ही मुख्य है जैसा कि ऊपर लिख आए है जपन्हविष्यभुक् शान्तः" । अब हविष्य में कौन कौन वस्तु है सो लिखते है और कार्तिक में किस किस वस्त का त्याग है वह भी लिखते हैं। तथा सनत्कुमारसहितायां कार्तिकमाहात्म्ये तथा पुराणसारोद्वारे च पुराणसमुच्चयेपि भविष्योक्ते हेमतिकं सिता स्विन्न धान्या मुद्गास्तिला यवा ।। कलाय कंगु नीवारा वास्तुकं हिलमोचिको । षष्ठिका कालशाकं च मूलक केमुकोत्तरं ।। ३२ ।। कंद सैंधव सामुद्रो लवणो दधि सपि षी। पयानुदृतसारं च पनसाम्रो हरीतकी ।। ३३ ।। कदली लवली धात्री फलान्यगुडमैक्षवं । पिप्पली जीरकं चैव नागरंगकतित्तणी । अतैलपक्क मुनयो हविष्यान्नम्प्रचक्षते ।। ३४ ।। तथा हेमाद्रो छान्दोग्यपरिशिष्टेकात्यायनः COMK भारतेन्दु समग्र २८