पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७

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नेह निवाह कियो नहिं आवत । देखनहू को हमें तरसावत । आयो सखी सावन बिदेश मन-भावन जू कैसे करि मेरो चित हाय धीर धारिहै । 'हरीचंद' हँसि हंसि पोछै मुख अंचल सों आरसी लै दूजी ठाढ़ी कहै कछ माख है ऐहै कौन भूलन हिंडोरे बैठि संग मेरे एक मोती बीनै एक गूथै बेनी एक हँसे कौन मनुहारि करि भुजा कंठ पारि है । सांसत हमारी एक करै मिल लाख है। 'हरीचंद' भीजत बचैहै कौन भीजि आप बसन के दाग धोवै नख-छत एक टोवै कौन उर लाई काम-लाप निरवारिहै । चूरि लै चुरी को खेले एक जूस-ताख है ।७१ मान समै पग परि कौन समुभैहै हाय कौन मेरी प्रानप्यारी कहि के पुकारिहै ।६६ आई आज कित अकुलाई अलसाई प्रात रीसै मति पूछे बात रंग कित ढरिगो । पेरि घरि घन आए छाय रहे चह और सोने से या गात इवें सोनो भयो आप के वा कौन हेत प्राननाथ सुरति बिसारी है। आतप प्रभात ही को प्रगट पसरिगो । दामिनी दमक जैसी जुगनूँ चमक तैसी 'हरीचंद' सौतिन की मुख-दुति छीनी के वा नभ मैं बिशाल बग-पंगति सवारी है। आपनो बरन कहूँ पाय धाय ररिगो । ऐसी समै 'हरिचंद' धीर न धरत नेकु नील पट तेरो आज और रंग भयो काहे । बिरह-बिथा तें होत व्याकुल पियारी है । मेरे जान बिरि पिया ते पीरो परिगो ७२ प्रीतम पियारे नंदलाल बिनु हाय यह कैसे सखी बसिए ससुरारि मैं लाज को सावन की रात किधौं द्रौपदी की सारी है ।६७ लेइबो क्यों सहि जावै । नै मन फेरियो जानौ नहीं बलि ऐसी सहेलिने ऊधमी हैं नख-दंत के दाग ले कोऊ गनावै । हेरि कै फेरि मुखै 'हरीचंद जू' त्यों 'हरिचंद' खरी ढिग सास के ढीठ जिठानी पिया को हँसावै । प्रीत-पपीहन को घन-साँवरे ओढि के चादर रात के सेज की पानिप-रूप कबौं न पिआवत । सामने ही ननदी चलि आवै ।७३ जानौ न नेक बिथा पर की बलिहारी हम तो तिहारे सब भाँत मों कहावै सदा तऊ ही सुजान कहावत ।६८ हम सों दुराव कौन सो है सो सुनाइ दै । आई गुरु लोग संग न्यौते ब्रज गाँव नई द्वार पै खड़े है बड़ी देर सों अड़े हैं यह दुलही सुहाई शोभा अंगन सनी रही । आशा है हमारी ताहि नेक तो पुराइ पूछे मन-मोहन बतायो सखियन यह 'हरीचंद' जोरि कर बिनती बखानै यही सोई राधा प्यारी बृषभानु की जनी रही । देखि मेरी ओर नेक मंद मुसुकाइ दे। 'हरीचंद' पास जाय प्यारो ललचायो दीठ एरी प्रान-प्यारी बार बार बलिहारी नेक लाज की धंसी सो मानो हीर की अनी रही । चूंघट उघारि मोहिं बदन दिखाइ दै ।७४ देखो अन-देखो देख्यो आधो मुख हाय तऊ सास जेठानिन सों दबती रहै आधो मुख देखिबे की हौस की बनी रही ।६९ लीने रहै रुख त्यौं ननदी को । भूली सी भ्रमी सी चौंकी जकी सी थकी सी गोपी दासिन सों सतरात नहीं 'हरीचंद' दुखी सी रहत कछु नाहीं सुधि देह की । करे सनमान सखी को। मोही सी लुभाई कछु मोदक सों खाए सदा पीय कों छिन जानि न दसत बिसरी सी रहे नेक खबर न गेह की । चौगुनो चाउ बढ़े या लली को । रिस भरी रहे कबौं फूलि न समात अंग सौतिनहू को असीसे सुहाग कर हँसि हँसि कहै बात अधिक उमेह की । कर आपुने सेंदुर टीको ।७५ पूछे ते खिसानी होय उतर न आवै ताहि कहो कौन मिलाप की बातें कहै कही जानी हम जानी है निसानी या सनेह की ७० औरन की तो कछ न पतीजिये । आई प्रात सोवत जगाई मैं सखीन साथ चित चाहै जहाँ बसिए मिलिए न कभू ननद बिलोकिबे को करै अभिलाख है। जिय आवै सोई सोई कीजिये wdex प्रम माधुरी ४७