पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८७९

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यत्तस्यपापंघटसंस्थितं तदानिरीक्षचित्वा परिमाजयेद्यमः । । तुलसीनयेषां ममपूजनार्थ सम्पादितैकादशिपुण्य वासरे । विग्यौवन जीवितमर्थ संतति तेषामुखनेहचदृश्यते परैः ।। जो कोई श्री तुलसी से हमारी पूजा करता है और उसके विमल ओर बिना टूटे दल हमको समर्पण करता है उसके हृदय का पाप यमराज दूर कर देते हैं । जिन लोगों ने एकादशी के दिन हमारी तुलसी से पूजा नहीं किया उनके जीवन और काम और उनके संतान धिक्कार योग्य हैं और मुंह देखने के योग्य नहीं है। अगहन के महीने में दीपदान का बहुत फल है। यथा -- यः करोति सहोमासे कपूरेण च दीपकं । अश्वमेधभवाप्नोति कुलचैव समुदरत । । घृतेन चाथतैलेन दीपंयोज्वालयेन्नरः । सहोमासे ममागेतु तस्यपुण्यफलं शृणु । । विहायसकांपापं सहसदित्यसन्निभः । ज्योतिष्मता विमानेन ममलोके महायते ।। जो कोई अगहन में कपूर का दीया बालता है उसको अश्वमेध का फल मिलता है और अपने कुल का उद्धार करता है । घी से अथवा तेल से जो लोग अगहन में हमारे सामने दीया बालते हैं वे लोग सब पापों से छूट के हजार सूर्य समान ज्योति पाते हैं और बड़े ज्योतिमान विमान पर बैठ के हमारे लोक जाते हैं। इत्यादि अष्टमे। श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि अगहन में जो लोग हमारी प्रदक्षिणा करते हैं और जो हमैं अष्टांग दंडवत करते हैं वे लोग स्वर्ग में निवास करते हैं। यथा प्रदक्षिणा दडपातं यः करोति सदामम ! सहोमासि विशेषणहयाकलाम्बसतेदिवि ।। पदभ्यांकराम्यांजानुभ्यांउरसाशिरसातथा । मनसा वचसा दृष्ट्याप्रणामो ऽष्टंगउच्यते ।। जो लोग हमको दंडवत और प्रदक्षिणा कहते हैं वे लोग कल्प भर स्वर्ग में निवास करते हैं । पैर से १ । हाथ से २ । जंघा से ३ । छाती से ४ । शिर से ५ । मन से ६ । वचन से ७ । और दृष्टि से ८ । नमस्कार करने को अष्टांग दंडवत कहते हैं अर्थात् आठो अंग झुक और आठों अंग से नमस्कार करें उसको साष्टांग दंडवत कहते हैं। इत्यादि नवमे। श्री भगवान आत्रा करते हैं कि एकादशी का व्रत और जागरण जो लोग करते है वे हमको अत्यंत प्रिय है और जागरण में जो लोग दीपदान इत्यादि करते हैं वे हमारे परम प्यारे हो जाते हैं । यथा- यः पुनः कुरुते नृत्यं दीपं गानं च पूजनं । न तत् क्रतुशतैः पुण्यंत्रतैदीनशतैरपि ।। जो भक्त हमारे सामने नाचते हैं, दीपदान करते हैं, हमारा कीर्तन करते हैं, पूजा करते हैं उनके पुण्य के बराबर न सौ यज्ञ का पुण्य है और न सौ व्रत और दान का पुण्य है। इत्यादि द्वादशे । अब कौन देवता की पूजा करना चाहिए सो आप आज्ञा करते हैं कि अगहन में कीर्ति और केशव की पूजा करना चाहिए और सपत्नीक ब्राहणों को भोजन कराना चाहिए। यथा सहोमासे चवै देवी कीर्तियुक्तोहि केशवः । तस्यपूजा प्रकर्तव्यायथापूर्वप्रभाषिता ।। ब्राहमणं केशवं कुर्यात्तत्पत्नीकीर्ति -संज्ञिकाः । दंपती विधिवत्पूज्यौ वस्त्राभरणधेनुभिः ।। दाम्पत्योः पूजनेवत्सपूजितो हंसदारकं । 187O*** मार्गशीर्ष महिमा ८३५ Son