पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८०

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तस्मादवश्यं सम्पज्यो दम्पती मम तुष्टये । । अगहन के महीने में कीर्ति देवी और केशव देवता की पूजा षोडशोपचार से करना । ब्राहमण को केशव मानना और ब्राहमण पत्नी को कीतिं समझ के वस्त्र गहना गऊ से दोनों की पूजा करना । दंपती ब्राहमण के पूजा से हमारी और लक्ष्मी दोनों की पूजा होती है, इस हेतु हमारे तुष्ट होने के अर्थ दंपती की पूजा अवश्य करना । इत्यादि चर्तुदशे । श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि अगहन में हमारे प्रिय कदंब वृक्ष की पूजा अवश्य करना । यथा - मार्ग शुक्ले प्रतिपदिकदम्बपूजयेत्तु यः । आयुरारोग्यमैश्वय्य पुमान् प्राप्नोत्यसंशयः । । मार्गशीर्षे सिताष्टम्यां भोजनं च कदम्बके । सिक्थे सिक्थे च गोदानं पुमानप्राप्नोत्यसंशयः । । एकादश्यांव्रतकुर्यात द्वादश्यामरुणोदये । कदम्बम् पजयेद्भत्क्या साक्षाच्छीकृष्णदर्शनं ।। अखंड दीपकंकुन्निीपवृक्षे हरिप्रिये । सर्वान कामानवाप्नोति वशीकरणमुत्तमं ।। मार्गशीषेत्रयोदश्यांयोनीपम्पयसा Sचर्येत । बिन्दुनाबिन्दुनाचैव अश्वमेध फलं लभेत् । । मार्गशीर्षेचतुर्दश्यान्दधिनानीपमर्चयेत् । इह सन्तान वृद्धिश्च परत्र परमपदं ।। मार्गशीर्ष्याम्पौर्णमास्यांगुञ्जाहारेणनीपक । वेपृष्ट्येदनमालाभिः कृष्णस्वस्यवशोभवेत् ।। इदरहस्यं गोपनीयं पुत्र सर्वात्मनामम ।। अगहन सुदो प्रतिपदा को जो कदम्ब की पूजा करते हैं वे आयुष्य, आरोग्य, ऐश्वर्य पाते हैं । अगहन सुदी अष्टमी को जो कदम्ब के नीचे भोजन करते कराते हैं वे एक एक ग्रास में गोदान का फल पाते हैं । एकादशी का व्रत करके द्वादशी को सबेरे जो कदम्ब की पूजा करता है उसको साक्षात् श्रीकृष्ण का दर्शन होता है । जो कदम्ब के सन्मुख अखंड दीपदान करता है उसको सब कामों का फल होता है । यह हमारा वशीकरण है । अगहन की तेरस को जो कदम्ब को दूध चढ़ाते हैं, उनको एक एक बूंद में अश्वमेध का फल होता है । मार्गशीर्ष की चौदस को जो कदम्ब को दही चढ़ाते हैं, उनको इस लोक में संतान और उस लोक में परम पद मिलता है अगहन सुदी पुनवासी को जो लोग कदम्ब को गुंजा की माला और बनमाला समर्पण करते हैं. साक्षात् श्रीकृष्ण उनके वश में हो जाते हैं। अब इससे बढ़ के और क्या फल होगा कि थोड़े साधन में और साक्षात् श्रीकृष्ण वश हो जाय । ऐसा कौन होगा जो इस छोटे साधन को बड़े फल की इच्छा से न करै । यह केवल श्री भगवान की कृपा है कि हम जीवों के हेतु उसने ऐसे छोटे छोटे साधन बनाए हैं । देखो कदम्ब को एक दिन गुंजा की माला चाने से आप वश में हो जाते हैं, यह केवल उनकी दीन दयालुता है । अहो, ऐसा कौन मूर्ख होगा जो इस बात को जान के भी श्री कृष्ण को वश करने की इच्छा न करेगा । श्री भगवान आज्ञा करते हैं कि हे पुत्र इस रहस्य को आत्मा से अधिक गुप्त रखना । इत्यादि षोड़शे। यह स्कंद पुराण के मार्गशीर्ष माहात्म्य का सारांश यहाँ पर लिखा गया है, जिससे सज्जनों को संतोष होगा। अब अगहन में किस दान की विशेष महिमा सो लिखते हैं। यथा- तिलपात्र तुयोदद्यान्मार्गशीर्षेसकांचनं । कुलाना नरकास्थाना तिलसंख्यासमुदरेत् ।। भारतेन्दु समग्र ८३६