पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/८८२

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से पूछा देवताओं के जो व्रत हैं वह लिखते हैं । अगहन बदी तीज को स्त्रियों को सौभाग्य सुंदरी का व्रत सौभाग्य का देनेवाला है । इसकी विशेष विधि व्रतार्क आदि ग्रंथों में लिखी है। इत्यादि । मार्गशीर्ष कृष्णा ११ को उत्पन्ना एकादशी का व्रत है । मत्स्यपुराण में इसकी कथा है । अर्जुन ने श्रीकृष्ण है और श्रीकृष्ण ने आज्ञा किया है कि इस एकादशी को एकादशी का जन्म है और यह बड़ी पुनीत एकादशी है 1 इत्यादि मातस्ये उत्पन्नाव्रतं । इसी अगहन बदी ११ को वैतरणी व्रत होता है । इसमें गोपूजन और गोदान करना चाहिए । यह कथा भविष्योत्तर पुराण की हेमाद्रि ग्रंथ में लिखी है । राजा युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से पूछा है । उन्होंने उसका विधान और फल कहा है। एकादशी तिथिः कृष्णामार्गशीर्षगतानृप । तामासाद्यनर: सम्यग्गृहणीयान्नियमं शुचिः । । एकादशी तिषिः कृष्णानाम्ना वैतरणी शुभा । साव्रतेनसदाकार्या नक्तावाचोपवासिनी ।। मध्यान्हेतुनर: स्नात्वा नित्यनिवर्तित क्रियाः । रात्रौ सुरभिमानीय कृष्णमेचद्यथाविधि ।। इत्यादि भविष्योत्तरे वैतरणीव्रतं इसी एकादशी को कृष्णा एकादशी का व्रत होता है । यह व्रत वाराह पुराण में पृथ्वी ने श्री वाराह जी से पूछा है सो आपने आज्ञा किया है कि इस कृष्णा एकादशी को व्रत करना तिलपात्र दान करना । समस्तपातकहरं स्वर्गदसर्वकामदं । न समं कृष्णद्वादश्या किञ्चिदस्तिपर' भुवि ।। मार्गशीर्षे कृष्णपक्षे दशम्यामेकभुक्नरः । एकादश्यामुपवसेत् कृष्णास्याचा समाचरेत् । । स्नातवाच कृष्णैस्तु तिलैः प्रभाते दद्याच्यसम्यक् तिलयुक्त पात्रं । नमोस्तुकृष्णाय पितुश्चमातुः हत्वात्वघं प्रापयतोस्वगत्यै ।। इत्यादि वाराह पुराणे कृष्णावतं । अगहन बदी अमावस्या को गौरी तपोव्रत सौभाग्य बढ़ने के हेतु करना चाहिए । यह अंगिरा ने कहा है कि इस व्रत के करने से स्त्री को रूप-सौभाग्य मिलता है। यथा - आदौमार्गशिरेमासिहयमावस्यादिने शुभे । गृहणीयान्नियमं तत्र दन्तधावन पूर्वकं । । इस दिन सौभाग्य वस्तु दान करना और सुवासिनी को भोजन कराना चाहिए । इत्यादि अगिरोक्त गौरीतपोव्रतं । इसी अगहन की अमावस्या को स्त्रियों को सौभाग्य वृद्धि के हेतु महाव्रत लिखा है । यह हेमाद्रि ग्रंथ में कालिकापुराण की कथा लिखी है । यथा - ततोमार्गशिरेमासि प्रतिपद्य परेहनि । उपवसेत् स्वगुरुम् पृछ्य महादेवस्मरेन्मुहुः । । एवम्व्रत महच्चैव ब्रहमघनेप्यघमर्षण । धनमायुप्रदन्नित्यं रूप सौभाग्यदंपरं ।। इत्यादि कालिका पुराणे । मार्गशीर्ष सुदी ५ को नाग की पूजा करना, यह बात हेमाद्रि ग्रंथ स्कंद पुराण में लिखी है । यथा - शुक्लामार्गशिरे या चावणेया च पंचमी । स्नानैदनिर्बहुफला नाग लोकप्रदायिनी । । इत्यादि स्कान्दे नागपंचमी । भारतेन्दु समग्र ८३८ XDER