पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९७३

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f AKA साधारण में इसके कान सुनने वालों का सुनना तो मानों अपन माना गिना का रहस्य उद्घाटन करना है । इस के ga तो जो अधिकारी हो उन्हीं से कहना सुनना योग्य है । हस मरे जिवन नान्गर्व यह किचन के पास या ग्रंथ रहे वह इस को किसी साधारण स्थान में या साधारण लोगों के हाथ में न फोक परंच इस का बहन बन्नपूर्वक रखें। ऐसे ही युगल स्वरूप के चरणचिन्ह वर्णन में भक्त मवम्ब, महाप्रभा के वर्णन मश्री वल्लभीयसर्वस्य, चारो स्प्रदाय के सविस्तार वर्णन में वैष्णपसर्वस्य और भगवद्भक्ति निरूपण में तदीय सर्वस्य, भक्ति सूत्र का भाष्य, चंद्रावली नाटिका और अनक लागा नया रहस्य क गद्य गद्य मय नय मरं पास प्रस्तुत है। जिन भवदीय लोगों को देखने की इच्छा हो अनुग्नह करके मुझम मंगया ग । भाद्रपद शुक्ल ८ हरिश्चंद्र सं. १९३३ मूर्तिपूजन का निषेध करनेवाले दयानंद प्रभृत लोगों के गले की दुषणमालिका रचनाकाल सन् १८७०।- सं. श्री श्राधाभावियत । भूमिका अथ दयानंदनामी क्या जाने कौन जाति वा किस आश्रम के काई नग्न पुरष सब शो म भ्रमण करत हुए सनातन सधर्म रूपी सूर्य को राह की भांनि ग्रास करते हुए भूखा और आगम्य म भर हुए आषा के हृदय शस्त्र को रुपने रंग में रंगते हुए इसी बहाने अपना नाम लोगों में विनित करते हुए और न वाक्य बना के आडम्बर से साधु लोगों का हृदय दहन करते हुए काशी में आये और दुर्गाकुण्ड निवासियों के सहवामा हरा और उनन व्यर्थ उपद्रव किये वह सब पर विदित है अव उनने एक छोटी सी पुस्तक छपवाकर लागा पर यह विदित करना चाहा है कि मैं द्वारा नहीं इस से मैंने ऐसा विचार किया कि ऐस मनुष्य स सम्भाषण करना नानन नहा और पत्रद्वारा शास्त्रार्थ करना जिसमें सब लोगों पर सदसत् का प्रकाश और हारन जीतने का निश्चय हा जाय इस हेतु गह दूषणमानिश उनके गले में पहिनाई जाती है । उनको उचित है कि इन सब प्रश्ना का प्रति पन्द्र उत्तर दे और इसी प्रकार से बराबर पत्रद्वारा शास्त्राय होय और इतने प्रश्नों का एक जानने के इश्तिहार की माँ उत्तर न दिया जाय क्योंकि इन शब्दों के प्रति शब्द का उत्तर न देन से परास्त समझ जायगे और प्रश्नात्तर करत करते जो धाक जाय और जिसकी बुद्धि में उत्तर की युक्ति न आपै यह ारा समझा जायगा । १५७०६. हरिश्चंद्र काशी HOM दूषणमालिका ९२९