पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९७६

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-WARPAN

कायद्यपि लोक में कुछ फल न हो तथापि नो सर्वज्ञ न उहरियेगा और जो सर्वज्ञता बिना कोई बात कहियेगा तो ७ प्रश्न का दोष पड़ेगा। (इन ऊपर लिखे ग्रंथो को दयानन्द प्रमाण मानते हैं। ५३. शिष्टाचार प्रमाण है कि नहीं २४. जो कहिये कि जो अविरुद्ध अर्थात् पेट में लिखा है वह प्रमाण आकी अप्रमाण तो आप नित्य उठ के सब वेद में लिखी हुई बातें करते हैं तो इन सब को घेद से सिद्ध चीजिये कि आप मझी सगाते है सो वेद में कहाँ लिखा है, आप कौपीन धारण करते हैं यह कहाँ लिखा है, में एक दिन आप के दर्शन को गया था उस दिन आप बाजार के लाइट और गुलाबजामुन खाते थे वह कहाँ लिखा है और उस दिन आप पीतल की लोटिया में जल पीते थे यह बेद में कहाँ . आप मूर्ति पूजन और पुराणों का निषेध करते हैं यह कहाँ लिखा है । ५५. जो कड़िये यह तो मनुष्य की परंपरा प्राप्त डी है तो मूर्तिपूजन भी परंपरा प्राप्त है और शिष्टाचार अवश्य माननीय है और भी इसमें यह बात है कि मूर्ति पूजन का । इस यदि परलोक में इसका फल सत्य हुना तो फिर महापाप के भागी हुए और जा और जो न सत्य हुआ तो हम लोगों की कुछ हानि नहीं बल्कि शिष्टाचार मानने से हमारी प्रशंसा ही होगी। ५६, ये यथा माम्प्रपद्यन्ते तां स्तथैव भजाम्यहं । इस भगवत् प्रतिज्ञा का क्या आशय है और यथा शब्द के अतर देवतारिक और मूर्ति आदिक नहीं है इसमें प्रमाण पूर्णक नियम झहिये । ५७. कालाग्निरद्रोपनिषत और तापनीयादिक श्रुति को आप क्यों नहीं मानते इस में श्रुति प्रमाण दीजिये ५८. सप वर्ण के वंश वे ही है इस में क्या प्रमाण युक्ति पूर्वक कहिये । ५९. सब वेद की पुस्तकें और उनके सब मन्त्र के ही है जो ईश्वर से निकले और इतने काल तक उनका स्वरूप कुछ नहीं बदला और ये सब वे ही आप अक्षर है इस में किसी ने कपोल कल्पित मन्त्र नहीं मिलाये इस में क्या प्रमाण और क्या युक्ति है कहिये । ६०. जो कहिये कि परंपरा प्राप्त है तो परंपरा प्राप्तता से वेद का तो निश्चय होय और परंपरा प्राप्त मृतिपूजन न माना जाय इसमें क्या प्रमाण और जो आप कहिए कि हम अपनी बुद्धि से समझते हैं कि ये वेद वे ही है तो आप की बुद्धि ठीक है इसमें क्या प्रमाण और कौन सी युक्ति है। ६१. बात सौ पण्डित लोगों की मानें कि एक आप की । ६२. जो कहिये कि ऐसा लिखा है कि एक पंडित सी मूर्स इतना होता है तो यह सब अज्ञ हे इम पंडित है हमारी बात मानो तो इस में क्या प्रमाण है और क्या युक्ति है कि आप ही पडित है और ये सब अज्ञ हैं । ६३. वेद की पुस्तक पर जो कोई लात रखदे तो आप उसको दोष भागी कहेंगे तो वह दोष भागी कैसे होगा क्योंकि मूर्तियों में तो आप कहते हैं वहाँ बया है पत्थर है तो उस वेद की पुस्तक में क्या है कागज और सियाही है जो हमारे हाथ की बनाई है और हमारे हाथ का लिखा है और अक्षर है सो एक प्रकार का संकेत है तो ऐसी जाट वस्तु के अनादर से क्या दोष है । जो कहिए उन से वही मन्त्र समाने जाते है जो हमारे धम्म स्वरूप है इस से आदर के योग्य है तो ये मूर्तियाँ जिन से हमारे पूज्य देवता के आकार का स्मरण होता है क्यों नहीं मानने के योग्य है आप के पिता या किसी पुरुषा का मत देह या उनके चित्र जिससे उनके स्वरूप का ज्ञान हो या कागज पर उनका नाम लिख के इन सब का अनादर करें और इन पर पुरी वस्तु डाले तो आप को पुरा लगेगा कि नहीं क्योंकि ये सब तो तत्व के अंश और जड़ वस्तु है। दयानन्द जी ने ४ प्रश्न किए थे इस हेतु उन के चार को चार बेर चौगुन करके चौसठ प्रश्न किए है इन का उत्तर उन के अक्षरशः देना उचित है। HAH भारतेन्दु समग्र ९३२