पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९७७

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वाह के धर्म सभा जिसके ऐसे मनमाने नियम, इसको भी जाने दीजिये। इसके आगे एक दूसरी संस्कृत व्यवस्था ->***** | उन्होंने नामी गिरामी लोगों के पास पत्र लिख इस विलगी। इस सर्दम में तहकीकात - पुरी की तहकीकात रचना काल सन् १८७० । बनारस लाइट प्रेस' से सन् १८७१ में प्रकाशित । इस सिलसिले में एक घटना का उल्लेख कर देना ठीक होगा। ग्यारह वर्ष की उम्र में भारतेन्तु बाबू जगन्नाथ पुरी गये। वहाँ जगन्नाथ जी की मूर्ति के साथ भैरव जी की मूर्ति बैठाने की प्रथा थी। बालक हरिश्चन्द्र को यह प्रथा पर उनकी सम्मति मांगी। इसीके बाद सन् १८७१ में किसी पण्डित नहाशय ने तहकीकात पुरी' नामक एक किताब लिखी। उस किताब के खण्डन में भारतेन्दु बाबू ने तहकीकात पुरी की तहकीकात ग्रन्थ लिख यह सिद्ध किया कि श्री जगदीश पूर्ण पुरषोत्तम पीठ वैष्णव स्थान है। यहाँ मैरव की प्रतिमा नहीं हो सकती।-सं. तहकीकात पुरी की तहकीकात इसके पूर्व में कि मैं 'तहकीकात पुरी' पर कुछ अपनी अनुमति प्रकट करूं, मैं उसी तहकीकात पर कुछ विचार करता है जिसे देख के लोग उसका संपूर्ण वृत्तांत जान जाय और धोखा न खायं । अब पहिले ही से विचार कीजिए इसका नाम 'तहकीकात पुरी' है धर्म विचार की जो पुस्तक और सबके पहिले फारसी शब्द 'बिस्मिल्ला गलत' । इसको जाने दीजिए पुस्तक से आरंभ कीजिए। इस पुस्तक में पडिले ही लिखा है 'काशी धर्म सभा निर्णयः' अब कहिये किस मिती की धर्म सभा में निर्णय हुआ है कुछ दिन मिती भी है कि यों ही धर्म सभा का ध्यान करके निर्णय किया गया है । जो हो । आगे उसमें लिखा है, यथा नियमित भोगराग वितरण संरभ्रणाय श्री जगन्नाथ मंदिरे श्री जगन्नाथ समकाण स्थापित मेरययोत्पाटनकश्नितितषिभिः : कृतन्ततस्थापनाय यत्र श्री मोहनलाल शर्मा पुरींगत्वा इत्यादि । वाड वाह क्या सुदर संस्कृत वैयाकरण लोगों के देखने रोग्य है क्या कह स्थान थोड़ा है नहीं तो प्रति पद उद्धृत करके दिखा देता । इसका अर्थ यह है कि भैरव की मूर्ति श्री जगन्नाथ जी के समकाल से स्थापित थी सो अब उच्छिन्ना हो गई । पंडित जी ने बिना जगन्नाथ महात्म देख इतना परिश्रम क्यों व्यर्थ किया भला प्रत्यक्ष नहीं तो सपने में तो देव 'गवर्नमेंट को इसमें सहायता देनी उचित है, छिः छिः गवर्नमेंट को क्या पढ़ी है कि इसके बीच में कूदेगी । यह । हार मुझे इनके इस व्यर्थ परिश्रम का सोच होता है और सुनिये इस व्यवस्था के नीचे लिखा है कि दशा तो जितने पृथ्वी पर मंदिर है सब में है । जब गवर्नमेंट सब पर हाथ लगायेगी तब इधर भी देखेगी, यह भी हुआ। इसके नीचे श्री काशी धर्म समासद पं. वस्ती राम जी की सम्मति है । अब मैं फिर पंडित जी से पूछता हूँ कि संसार में जितनी सभा है उनकी यह रीति है कि लेखाध्यक्ष पा सभापति का अंत में हस्ताक्षर होता है सो यह धर्म सभा के किस नियम में लिखा है कि एक सभासद भी सम्मति सकता है और किस सभा में आपने इस व्यवस्था पर सभासदों से सम्मति ली थी । जो कहिए कि मैने आप ही लिखा है तो बताइए कि धर्म सभा के प्रत्येक सभासद को कितना स्थान का अधिकार है और आप की धर्म सभा के कितने सभासद है । बाह Storin. तहकीकात पुरी की तहकीकात ९३३