पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९८६

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प्रथम भाग षष्ट अंश -१. कलिजात चरित्र २. चतुर्विध लय कथा ३. ब्रह्मज्ञान कथा ४. केशिध्वज कर्तृक खाण्डिक्य निरूपण । द्वितीय भाग - सूत्र-शौनक संवाद - १. विष्णु धर्म कथन २. नाना धर्म कथन ३. पुण्य व्रत नियम एवं यम कथन ४. धर्म शास्त्र ५. अर्थ शास्त्र ६. वेदांत शास्त्र ७. ज्योतिः शास्त्र ८. वंश आख्यान ९. स्तव कथन १०. मनु सकल की कथा । फल श्रुति -यह पुराण लिखकर आषाढ़ मास में घृत धेनु के साथ पौराणिक ब्राहमण को दान करने से सूर्य के रथ पर आरोहण करके विष्णु धाम में गमन एवं भक्ति युक्त पाठ किंवा श्रवण करने से विष्णु लोक में वास औ दिव्य भोग प्राप्ति होती है इसकी अनुक्रमणिका पाठ वा श्रवण करने से समुदाय पुराण श्रवण फल होता चतुर्थ वायुपुराण पूर्व और उत्तर दोखंड २४००० चौबीस सहस्र श्लोक वायु ने श्वेत कल्प प्रसंग से सकल धर्म कहा है। पूर्व भाग -१. स्वर्गादि लक्षण विस्तार कथन २. सकल मन्वन्तर के राजगण का वंश कथन ३. गयासुर वध ४. मास गणों की महिमा एवं माघ मास की विशेष महिमा ५. दान धर्म एवं राज धर्म विस्तार कथन ६. भूचर, पातालचर, दिकचर एवं आकाशचर विवरण ७. व्रत विवरण । उत्तर भाग १. नर्मदा तीर्थ कथन २. शिव संहिता कथन । फल अति - यह पुराण लिखकर गुड़ धेनु के साथ गृहस्थ ब्राह्मण को श्रावण मास में दान करने से चतुर्दश इंद्र परिमित काल रुद्रलोक में वास नियम एवं हविष्य से पुराण श्रवण करने से वा श्रवण कराने से रुद्र तुल्यता प्राप्ति । पुराण की अनुक्रमणिका सुनने से समुदाय पुराण श्रवण फल प्राप्त होता है। पंचम श्रीभागवत द्वादशस्कंध १८०00 अठारह सहन श्लोक सारस्वत कल्पीय कथा । प्रथमस्कंध -- १. सूत और ऋषियों का मिलन २. व्यासदेव का पुण्य चरित्र ३. पांडव का चरित्र ४. परीक्षित का उपाख्यान । द्वितीयस्कंध १. परीक्षित शुक संवाद से सृष्टिद्वयनिरूपण २. ब्रह्मा नारद संवाद से अवतार कथन ३. पुराण लक्षण ४. सृष्टि प्रकरण कथन । तृतीय स्कंध - १. विदुर चरित्र एवं मैत्रेय मिलन २. ब्रहमा सृष्टि प्रकरण ३. कपिल सांख्य कथन । चतुर्थ स्कंध - १. सती चरित्र २. ध्रुव चरित्र ३. पृथुचरित्र ४. प्राचीनवर्हि आख्यान । पंचम स्कंध- १. प्रियव्रतचरित्र एवं उनका वंश कथन २. ब्रह्मांडान्तर्गत लोक सकल का वृतांत ३. उनको हिंदू पवित्र मानते है । हर एक पुराण में विशेष करके इन पाँच बातों का वर्णन है । जैसे –सर्गश्च प्रति सर्गश्च वंशोमनवन्तराणि च । वंशानु चरितं चैव पुराणं पंच लक्षणम् ।। अर्यात १ संसार की उत्पत्ति; २ प्रलय और प्रलय के पीछे फिर संसार की उत्पत्ति; ३ देवता और शूरवीरों की वंशावली ४ मनुष्यों का राज और ५ उनके वंश के लोगों का व्यवहार और चलन । पुराण अठारह हैं १ ब्रह्मा पुराण २ पद्म पुराण ३ ब्रह्मांड पुराण ४ अग्नि पुराण ५ विष्णु पुराण ६ गरुड़ पुराण ७ ब्रह्मवैवर्त पुराण ८ शिव पुराण ९ लिंग पुराण १० नारद पुराण ११ स्कंद पुराण १२ माके डेय पुराण १३ भविष्यत् पुराण १४ मत्स्य पुराण १५ बाराह पुराण १६ कूमम पुराण १७ वामन पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण । इन सब पुराणों में चार लाख श्लोक गिने गए है और अठारह उपपुराण भी । पुराण0 पुराना; पहले का; सबसे पहला । संस्कृत कोष में लिखा है -पुराण पुं० पण अर्थात व्यवहार दाव मुख्य धन द्यूतव्यवहार अर्थात जुए का खेल विष्णु चिरजीवी दीर्घायुः प्राण जीव के बनाए हुए अठारह पुराण तथा च प्रमाणम् । श्लोकमद्वयं द्रयं चैव वत्रयंवचतुष्टयम । अनापलिंगकूस्कानि पुराणानि पृथक पृथक ।। मार्कंडेय पुराण १ मत्स्य पुराण २ भविष्योत्तर पुराण ३ भागवत पुराण ४ ब्रह्मांड पुराण ५ ब्रह्मवैवर्त पुराण ६ ब्रह्मोत्तर पुराण ७ वाराह पुराण ८ वामन पुराण, ९ वायुपुराण १० विष्णु पुराण ११ अग्नि पुराण १२ नारद पुराण १३ पद्मपुराण १४ लिंग पुराण १५ गरुड़ पुराण १६ कूर्मपुराण १७ स्कंद पुराण १८ भारतेन्दु समग्र ९४२