पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/९९६

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कथन । पंचम पाद में वर्ण शंकर की वृत्ति कथन । फल श्रुति - यह पुराण लिखकर भक्ति पूर्वक हेम कूर्म युक्त ब्राह्मण को दान करने से परम गति होती है और श्रवण किंवा पाठ करने से सर्वोत्कृष्ट गति मिलती है। षोडश मत्स्य पुराण १४००० चौदह सहस्र श्लोक सत्य कल्प कथा । १. व्यास कर्तृक नरसिंह वर्णन २. मनु एवं मत्स्य संवाद ३. ब्रहमांड वर्णन ४. ब्रहमदेव एवं असुर उत्पत्ति कथन ५. मारुत उत्पत्ति ६. मदन द्वादशी कथा ७. लोकपाल पूजा ८. मन्वन्तर कथन ९. वैश्य राज्याभि वर्णन १०. सूर्य एवं चैवस्वत की उत्पत्ति ११. बुध का संगम १२. पितृवंशानु कथन १३. श्राद्ध काल निरूपण १४. पितृतीर्थ प्रचार १५. सोमोत्पत्ति १६. सोम वंश कीर्तन १७. ययाति चरित्र १८. कार्तवीर्य चरित्र १९. सृष्ट वंश कीर्तन २०. भूगुशाप २१. विष्णु का दश मूर्ति धारण २२. पुरुवंश कथा २३. हुताशनवंश कथन २४. क्रिया योग कथन २५. पुराण कीर्तन २६. नक्षत्र पुरुष कथन एवं व्रत २७. मार्कंडेय शयन २८. कृष्णाष्टमी व्रत २९. तडाग विधि माहात्म्य ३०. पादुकोत्सर्ग ३१. सौभाग्य शयन वर्णन ३२. अगस्त्य व्रत कथन ३३. अनंत तृतीया ३४. रस कल्यानी व्रत कथा ३५. आनंद कर व्रत ३६. सारस्वत व्रत ३७. उपराग अभिषेक ३८. सप्तमास स्वपन व्रत कथा ३९. भीम द्वादशी व्रत ४०. अनंग शयन व्रत ४१. अशून्य शयन व्रत ४२. अंगारक व्रत ४३. सप्तमी सप्तक व्रत ४४. विशोक द्वादशी व्रत ४५. दशधा मेरुप्रदान व्रत ४६. ग्रहशांति ४७. ग्रेह स्वरूप कथन ४८. शिव चतुर्दशी व्रत ४९. सर्व फल त्याग व्रत ५०. सूर्यवार व्रत ५१. संक्रांति स्नान ५२. विभूति द्वादशी व्रत ५३. षष्टि व्रत माहात्म्य ५४. स्नान विधि क्रम ५५. प्रयाग माहात्म्य ५६. द्वीप एवं लोकानुवर्णन ५७. अंतरिक्ष और दिशा कथन ५८. ध्रुव माहात्म्य ५९. इंद्रभवन वर्णन ६०. त्रिपुर घातन ६१. पितृ प्रवर माहात्म्य ६२. मन्वंतर निर्णय ६३. चतुर्युग संभूति युगधर्म निरूपण ६४. बज्रांग-संभूति ६५. तारकासुरोत्पत्ति एवं माहात्म्य ६६. ब्रहमदेव अनुकीर्तन ६७. पार्वती संभव ६८. शिव तपोवन वर्णन ६९. अनंगदेह दाह ७०. रति विलाप ७१. गौरी तपोवन ७२. शिव प्रसादन ७३. पार्वती ऋषि संवाद एवं विवाह ७४. कार्तिकेय जन्म और विजय ७५. तारकवध ७६. नरसिंह वर्णन ७७. पत्र कल्प कथा ७८. अधकासुर घातन ७९. बारानसी माहात्म्य ८०. नर्मदा माहात्म्य ८१. प्रवरानुक्रम ८२. पितृगाथा कीर्तन ८३. उभयमुखीदान ८४. कृष्णाजिन दान ८५. सावित्र्युपाख्यान ८६. राजधर्म ८७. विविधोत्पात् कथन ८८. ग्रह शांति कथन ८९. यात्रा निमित्त कथन ९०. स्वप्न मंगल कीर्तन ९१. वामन माहात्म्य ९२. वराह माहात्म्य ९३. समुद्र मंथन ९४. कालकूट अभिशान्तन ९५. देवासुर विमर्दन ९६. वास्तुविद्या ९७. प्रतिभा लक्षण ९८. देवता स्थापन ९९. प्रासाद लक्षण १००. देव मंडप लक्षण १०१. भविष्य राजा का उद्देश कथन १०२. महादान कथन १०३. कल्प कथा । -यह पुराण लिख कर भक्ति पूर्वक विषुव संक्रांति को ब्राहमण को दान करने से परम पद मिलता है और इस पुराण के पाठ किंवा श्रवण करने से आयु कीर्ति कल्याण की वृद्धि एवं हरि भवन प्राप्ति होती फलश्रुति में सप्तदश गरुडपुराण पूर्व एवं उत्तर दो खंड में १९००० उन्नीस सहन श्लोक गरुड़ प्रति भगवान ने कहा है । इस पुराण तार्क्ष कल्प की कथा है। प्रथम पूर्व खंड - १. पुराण उपक्रम वर्णन २. संक्षेप स्वर्ग वर्णन ३. सूर्यादि पूजा विधि ४. दीक्षा विधि ५. लक्ष्मी पूजा प्रकरण ६. नवव्यूह अर्चन ७. विष्णु पूजा विधान ८. वैष्णव पंजर १. योगाध्याय १०. विष्णु सहस्रनाम ११. सूर्य पूजा १३. मृत्युंजयान १४. नानामंत्र १५. शिव पूजा १६. गण पूजा १७. गोपालपूजा १८. त्रैलोक्य मोहन श्री रामार्चन १९.विष्णु पूजा एवं पंचतत्व पूजा २०. चक्रार्चन २१. देवपूजा २२. न्यासादि कथन २३. संध्यादि उपासना २४. दुर्गार्चन २५. सुरार्चन २६. माहेश्वर पूजा २७. पवित्रा रोपणार्चन २८. मूर्तिध्यान २९. वास्तु प्रमाण ३०. प्रासाद लक्षण ३१. सकल देवता पृथक पूजा ३३. अष्टांग योग ३४. दान धर्म ३५. प्रायश्चित्त विधि क्रम ३६. द्वीप ईश्वर और नरक वर्णन ३७. सूर्य व्यूह कथन ३८. ज्योतिष श्राद्ध भारतेन्दु समग्र ९५२