पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/२९

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(१०) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र सोचकर चट एक बडी चिता जला दी और फिर क्या किया-फिर एक एक करके प्रभु परिवार की १३ स्त्रियो का सिर धड़ से अलग कर चिता मे डालता गया और अन्त मे उसी सती-शोणित-से भरी तलवार को अपने कलेजे में घुसाकर आप भी वहीं लोट गया। अनुकूल वायु पाकर उस चिता ज्वाल ने चारो ओर अपनी लोल जिह्वा से लपलपाकर उस राजपुरी को सिंहद्वार तक अपने पेट में डाल लिया ! फिरनी लोग उठाकर जमादार को बाहर लाए, परन्तु घर के भीतर न घुस सके, अमीचन्द का इन्द्र भवन स्मशान भस्म से भर गया । केवल इस शोक समाचार को आमरण कीतन करने के लिये ही उस बूढे जमादार की प्राण वायु न निकली। अग्रेजो की प्रत मे हार हुई। नवाब की सेना ने कलकत्ता पर अधिकार किया। सेनापति हालवेल साहब अग्रेजो के किला की रक्षा के उपाय करने लगे पर कोई उपाय चलता न देखकर अन्त मे फिर अग्रेजो के गाढे समय के मीत अमीचन्द के शरण मे गए, बहुत कुछ रोए गाए। दयाद चित्त प्रमीचन्द ने अग्रेजो के दुष्ट व्यवहार का विचार न करके उन्हें आश्वासन दिया और नवाब के सेनापति राजा मानिकचन्द के नाम पत्र लिखकर हालवेल साहब को दिया। पत्र मे लिखा कि "बस अब बहुत शिक्षा हो चुकी, अब जो प्राज्ञा नवाब देंगे अग्रेज लोग वही करेगे" प्रादि । हालवेल साहब ने उस पत्र को किले के बाहर गिरा दिया। किसी ने उसे ले लिया पर कुछ उत्तर न पाया (कदाचित् राजा तक, नहीं पहुँचा) । सध्या को अग्रेजो की सेना ने पश्चिम का फाटक खोल दिया।नवाब की सेना किला मे घुस आई और बिना युद्ध जितने अग्नेज थे सब पकडे गए। नवाब 1 The head of the peons, who was an Indian of a high caste, set fire to this house, and in order to save the women of the family from the dishonour of being exposed to strangers, entered their apartments, and killed it is said, thirteen of them with his own hand, after which he stabbed himself but contrary to his intention not mortally --Orme VI 60. 2 Halwell's India Tracts, page 330