पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/४३

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(२४) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र सिक्का जारी रहने पर भी भाव हुण्डियावन गिर गया है। रोज गार की कमी के कारण नीचे निवेदन करता हूँ। १--परम उपकारी कम्पनी बहादुर को सरकार से कि जो उपकार का भण्डार और प्रजा पोषण की खानि है सूद की कमी हो गई कि सन् १८१० तक सब लोग सर्कार में रुपया जमा करके छ रुपया सैकडा वार्षिक सूद लेते थे अब पाँच रुपया से होते होते चार रुपए तक नौबत पहुंच गई। प्रजा का काम कैसे चले? २--अग्नेज साहबो के कारबार बिगड जाने से, कि जिनकी ओर से हर जिलो मे नील की बड़ी खेती ती थी और उससे जमीदारो को बडा लाभ होता था, जमींदारो को कष्ट है और खेती पडी रह गई। ३--अदालत के अप्रबन्ध और रुपया के वसूल होने में अदालत के डर के कारण कारबार देन लेन महाजनी कि जिससे सूद का अच्छा लाभ था एक दम बन्द हो गया। ४--साहब लोगो के बहत से हाउस बिगड जाने से बहुतेरे हिन्दुस्तानियो के काम, लाखो रुपया मारे जाने के कारण बन्द हो जाने से दूसरा काम भी नहीं कर सकते। ५-बिलायत से असबाब आने और सस्ता बिकने के कारण यहाँ के कारीगरो का सब काम बन्द और तबाह हो गया। ६-सर्कार की ओर से इस कारण से कि विलायत मे रूई पैदा न हुई यहाँ से रुई की खरीद हुई इससे भी कुछ लाभ था पर वह भी बन्द हो गई। इन्हीं कारणो से रोजगार मे कमी हो गई है। ५ प्रश्न-चलन के रुपया को रोजगार के काम में आमदनी कलकत्ता से होती है या नहीं यदि होती है तो उसका खर्च अनुकूल और प्रतिकूल समय मे क्या पडता है? उत्तर--कलकत्ता से बहुत रुपया चलान नहीं पाता और यदि कुछ रुपया आता है तो लाभ नही होता वरञ्च बीमा और सूद को हानि के कारण घाटा पडता है इसी से रुपया के बदले मे हुडी का आना जाना जारी है। द बाबू हर्षचन्द ता० २६ जूलाई सन् १८३४