पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (५१) बाबू साहब की बुगाहकता पण्डित मडली के इन वाक्यो से प्रत्यक्ष विदित होती है। वास्तव में इन्हें अपनी प्रतिष्ठा का उतना ध्यान न था जितना दूसरे उपयुक्त सज्जनो के सम्मानित करने का। इस समय ये गवन्मेण्ट के भी कृपापान थे। 'कविवचनसुधा', 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' और 'बालाबोधिनी' की सौ सौ प्रतियाँ शिक्षाविभाग मे ली जाती थीं। 'विद्या सुन्दर' आदि की सौ सौ प्रतियां ली गईं। उसी समय ये पञ्जाब युनिवर्सिटी के परीक्षक नियुक्त हुये। ____ 'कविवचनसुधा' का प्रावर न केवल इस देश मे वरञ्च योरप में भी होने लग गया था। सन् १८७० ई० मे फ्रास के प्रसिद्ध विद्वान गार्सन दी तासी ने अपने प्रसिद्ध पत्र “ली लैगुना डेस हिन्दुस्तानिस' मे मुक्तकण्ठ से बाबू साहब और कविबचनसुधा' की प्रशसा की थी।


AKSANA CSCR3 चन्द्रिका और बालाबोधित A परन्तु देशहितैषी हरिश्चन्द्र इन थोथे सम्मानो मे भूलकर अपने लक्ष्य से चुकने वाले न थे। इन्हो ने देखा कि बिना मासिकपत्रों के निकाले और अच्छे अच्छे सुलेखको के प्रस्तुत किए भाषा की यथार्थ उन्नति न होगी। यह सोच उन्हें केवल 'कविवचनचसुधा से सतोष न हुआ, और सन् १८७३ई० मे हरिश्चन्द्र मंगजीन" का जन्म हुआ। ८ सख्या तक इस की निकली, फिर यही 'हरिश्चन्द्रचन्द्रिका' के रूप में निकलने लगा। मैगजीन के ऐसा सुन्दर पत्र प्राज तक हिन्दी में नहीं निकला। जैसाही सुदर प्राकार वैसाही कागज, वैसी ही छपाई और उस से कहीं बढ कर लेख । उस समय तक कितने ही सुलेखको को उत्साह देकर बाबू साहब ने प्रस्तुत कर लिया था। मगजीन के लेख और लेखक आज भी प्रादर की दृष्टि से देखे जाते हैं। हरिश्चन्द्र का पांचवां पैगम्बर मुन्शी ज्वाला प्रसाद का 'कलिराज की सभा', बाबू तोताराम का अद्भुत अपूर्व स्वप्न', मुन्शी कमला प्रसाद का रेल का विकट खेल', प्रादि लेख अाज तक लोग चाह के साथ पढ़ते हैं। लाला श्रीनिवास दास, बाबू काशीनाथ, बाबू गदाधरसिंह, बादू ऐश्वर्य