पृष्ठ:भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र.djvu/९९

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्न (१) मे से सबसे अन्तिम 'नीलदेवी' तथा 'अन्धेर नगरी' है और अधूरे मे 'सती प्रताप' तथा 'नव मल्लिका'। 'नव मल्लिका' को महा नाटक बनाना चाहते थे और उसके पात्रो तथा अड्डो की सूची बना ली थी, परन्तु मूल नाटक थोडाही सा बना था कि रह गया । हिन्दी नाटको के अभिनय कराने का भी इन्होने बहुत कुछ यत्न किया, स्वय भी सब सामान किया था, और भी कई कम्पनियो को उत्साहित कर अभिनय कराया था। इनके बनाए 'सत्य हरिश्चन्द्र', 'वदिको हिंसा', 'अन्धेरनगरों और 'नीलदेवी का कई बेर कई स्थानो पर अभिनय हुअा है । उपन्यासो की ओर पहिले इनका ध्यान कम था। इनके अनुरोध और उत्साह से पहिले पहिल' काद- म्बरी' और 'दुर्गेशनन्दिनी' का अनुवाद हुमा, स्वय एक उपन्यास लिखना प्रारम्भ किया था जिसका कुछ अश 'कविवचनसुधा' में छपा भी था। नाम उसका था 'एक कहानी कुछ आप बीती कुछ जग बीती। इसमे वह अपना चरित्र लिखना चाहते थे। अन्तिम समय मे इस ओर ध्यान हुआ था। 'राधा रानी', 'स्वर्णलता प्रादि उन्हीं के अनुरोध से अनुवाद किए गए। 'चन्द्रप्रभा और पूर्णप्रकाश' को अनुवाद कराके स्वय शुद्ध किया था। राणा राजसिंह को भी ऐसा ही करना चाहते थे। अनुवाद पूरा हो गया था, प्रथम परिच्छेद स्वय नवीन लिखा, आगे कुछ शुद्ध किया था। नवीन उपन्यास 'हमीरह' बड़े धूम से प्रारम्भ किया था, परन्तु प्रथम परिच्छेद ही लिखकर चल बसे । इनके पीछे इसके पूर्ण करने का भार स्वर्गीय लाला श्रीनिवासदास जी ने लिया और उनके परलोक-गत होने पर पण्डित प्रतापनारायण मिश्र ने, परन्तु सयोग की बात है कि ये भी कैलाशवासी हुए और कुछ भीन लिख सके। यदि भारतेन्दु जी कुछ दिन और भी जीवितरहते तो उपन्यासो से भाषा के भण्डार को भर देते क्योकि अब उनकी रुचि इस ओर फिरी थी। यहीं पर हमे यह भी लिख देना आवश्यक जान पडता है कि इनके ग्रन्थो मे तीन प्रकार के ग्रन्थ हैं--(१) आदि से अन्त तक अपने लिखे, (२) कुछ अपना लिखा और कुछ दूसरो से लिखवाया ("नाटक" नामक पुस्तक मे ऐसा ही है), (३) दूसरे से अनुवाद कराया स्वय शुद्ध किया हुना (गो महिमा, चन्द्र- प्रभा-पूर्ण प्रकाश प्रादि)। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य ऐसे हैं जो उन्होने प्रधूरे छोड़े थे और फिर औरो के द्वारा पूरे होकर छपे (बुर्लभबन्धु, सतीप्रताप, राजसिंह प्रादि)। एकाध ऐसे भी हैं जो उनके हई नहीं हैं, धोखे से प्रकाशक ने उनके नाम से छाप दिया (माधुरी रूपक) । पहिले को छोड शेष ग्रन्थो की भाषा प्रादि मे