पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१०८

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६६ भारतेंदु हरिश्चन्द्र थे। काशिराज के दरबार के कुछ पंडितों की धूर्तता से इनका विशेप सन्मान नहीं हुआ। भारतेन्दु जी ने इनका अष्टावधान देखने के लिये अपने ही गृह के छत पर सभा कराई थी। इसी सभा में पंडित अम्बिका दत्त जी व्यास को सुवि की पदवी दी गई थी। इसमें इनका पूरा सन्मान किया गया था। इसका उल्लेख अन्यत्र हो चुका है। सन् १८७५ ई० में जब महाराज काश्मीर काशी पधारे थे तब उन्होंने भारतेन्दु जी का बहुत सन्मान किया था और इनके निवेदन :रने पर महाराज ने पाँच सौ विद्वानों की सभा भी की थी। इस सभा में प्रत्येक विद्वान को तीन तीन गिन्नियाँ प्रदान की गई थी। लखनऊ के खाले वाले वाजपेयी वैयाकरणी बौदल बाबा जिनकी अवस्था उस समय अस्सी वर्ष की थी, अपने पौत्र के साथ अपने एक सम्बन्धी के यहाँ मिर्जापुर में टिके हुए थे। वहीं उनके रुपये का बटुआ और लड़के का आभूषण गंगा तट पर से चोरी चला गया और वे बड़े कष्ट से काशी आप। ब्यास गणेशदत्त जी उन्हें भारतेन्दु जी के पास लिवा लाए । इन्होंने उन्हें एक मास तक अपने पास रखा और विदा करते समय उनको अच्छी सहायता भी दी। जिस प्रकार यह दूसरों के दुःख देखकर दुःखी होते थे उसी प्रकार दूसरों के सुख में सुख मानते थे। सन् १८७४ ई० के मार्च महीने में जब राजा शिवप्रसाद को भारत सरकार ने राजा की पदवी दी थी तब इन्होंने बड़े धूम-धाम से उसका उत्सव मनाया था। नगर में रोशनी, गायन वादन, विश्वनाथ जी का शृगार आदि उसके अंग थे। महाराज सर ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह बहादुर काशी-नरेश नेत्र रोग के कारण