पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/११०

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भला। मुन्शी। पूर्वज-गण ६६ इल्म अबदान' से भी हौ माहिर । इलम् अदिवान२ सब है तुम प खुला ।। नाम हातिम का खल्क भूल गई। सुनके शुहरत तेरी सखावत का ।। हुआ कोई जो शाल का ख्वाहाँ। उसको कशमीरी आपने बखशा ॥ हो गया कशमकश में था दिलेजार६ । आपका नाम सुनके कुछ, सम्हला ॥ कद्रदाँ श्राप हैं वगरनः फिक्र से इतनी मुझको काम था क्या ।। श्राज की हाज़िरी लिखी कलह सबेरे तो कूच है अपना ।। मुफलिसी जो मकान को जाना। अज़' को इसलिए है पेश किया । जात तेरी शरीफ - परवर मैं भी उम्मीद लुत्फ हूँ रखता ।। रोज अफ़जूद हो तेरा जाहो-हशम । है यह "श्राबिद" की जान दिल से हुश्रा ।। रुचि-वैचित्र्य भारतेन्दु जी ने 'प्रेमयोगिनी' में एक पात्र से अपने लये कहलाया है कि 'फिर आप तो जो काम करेंगे एक तजवीज के साथ ।' इसी सजीवता या तबीयतदारी के कारण इन्होंने हिन्दी में कई चाल के पत्र आदि लिखने की प्रथा चलाई। छोटी- 'अबद का अर्थ बंदा है, खुदाके बंदों का इतिहास। २दीन का बहुवचन, धर्म का ज्ञान । प्रसिद्ध दानी हो गया है। प्रसिद्धि । "घबड़ाहट । ६दुःखी । भद्र लोगों का पालने वाला। बबढ़नेवाला। ऐश्वर्य, संपत्ति । ८ उन्नतिशील,