पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/११२

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पूर्वज-गण १०१. स्ततो कृष्णः यतोकृष्णस्ततो जयः' था। इनके मोनोग्राम, या सिद्धान्त-चिह्न के चित्र नीचे दिए जाते हैं। i पाता न्य पहिले में भारतेन्दु जी के नाम का पहिला अंग्रेजी अक्षर एच (H) है, जिस की दो पाई दो दो खंभों से बनाई गई है, जिससे इनका निवास स्थान चौखंभा भी अंकित हो जाता है। खंभों के ऊपर का त्रिशूल त्रिशूलस्थ काशी का द्योतन कर रहा है । एच के बीच की पाई द्वितीया के चन्द्र से बनी है जिस पर इनके इष्ट देव का नाम 'श्री हरि' लिखा रहने से हिन्दी में इनका पूरा नाम श्री हरिश्चन्द्र बन जाता है । इस चन्द्र के नीचे रोहिणी तारा का चिह्न बिन्दु बना है जो फारसी लिपि की छोटी हे (*) का भी काम देता है। दूसरे में भारतेन्दु जी के इष्टदेव युगल- मूर्ति चित्रित हैं। तीसरे में वेणु और चन्द्रक श्री हरि का द्योतक है तथा चन्द्र बना हुआ है, जिससे मिलकर पूरा नाम श्री हरिश्चन्द्र बन जाता है। 'उत्तर शीघ्र', 'जरूरी' आदि से शब्दों को वेफर भारतेन्दु जी ने छपवा रखे थे, जिन्हें उचित स्थानों पर चिपका देते थे। लेखन तथा आशुकवित्व शक्ति भारतेन्दु जी जिस प्रकार अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे उसी प्रकार कई लिपियों को बड़ी सुन्दरता के साथ लिख सकते थे ।