पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१३९

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र १२८. ईश्वरीनारायण सिंह जी ने इनको लिखा था कि-"क्या यह सच है कि आपने इस्तीफा दे दिया ? यदि ऐसा है तो आपने अच्छा न किया। हाकिम लोग आपकी तजबीज़ को बहुत पसंद करते हैं और जहाँ तक मैं जानता हूँ कोई आपके विरुद्ध कुछ नहीं कहता। यदि सम्भव हो तो इस्तीफा उठा लीजिए और हम लोगों को आनरेरी मजिस्ट्रेट की कचहरी से अपने समान एक सुजन साथी को न खोने दीजिए।" सन् १८७५ ई० के नवम्बर में काश्मीर नरेश महाराज रणवी- रसिंह जी काशी पधारे थे और इनका बहुत सम्मान करते हुए इनपर विशेष स्नेह प्रगट किया था। उसी वर्ष के दिसम्बर मास में ग्वालियर के अधिपति महाराज जया जी राव सिंधिया तथा रीवाँ के अधीश्वर महाराज रघुराजसिंह जी का काशी में शुभाग-- मन हुआ। उक्त दोनों श्रीमंतों ने भारतेन्दु जी को बुलाकर- इनसे आदर पूर्वक भेंट किया और इनका सत्कार किया था। इसी महीने में जोधपुर नरेश भी काशी आए थे और भारतेन्दु जी को स्टेशन ही पर बुलाकर इन्हें सन्मानित किया था। सन् १८७७ ई० में श्रीमान् वाइसराय लार्ड लिटन काशी आए थे और उन्होंने भारतेन्दु जी को स्वयं बुलाकर इनसे बहुत देर तक बात चीत किया था। प्रिसववेल्स ( स्वर्गीय सम्राट एडवर्ड सप्तम ) के भारत में आगमन के उपलक्ष में इन्हें भी एक मेडल मिला था । काशिराज ने विलायत में एक कुँआ खुदवाया था जिसके लिये उनके पास कई पदक आए थे। इनमें से उक्त. श्रीमान् ने एक पदक भारतेन्दु जी को भी दिया था। सन् १८८२ ई० में जो शिक्षा कमीशन बैठा था उसके यह एक प्रधान साक्षी चुने गए थे पर ये बीमारी के कारण कमीशन के सामने उपस्थित होकर स्वयं अपना वक्तव्य न कह सके। पर इन्होंने अपनी लिखित साक्षी अवश्य भेजी थी। इसमें आगरा