पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारतेंदु हरिश्चन्द्र कोई उल्लेख मुझे अभी तक नहीं मिला। जिस समय शाहजहाँ का द्वितीय पुत्र मुलतान शुजाअ बंगाल का सूबेदार नियुक्त होकर बंगाल प्रान्त की राजधानी राजमहल को आया था, उस समय इनका वंश भी उसी के साथ बंगाल चला आया। जब बंगाल के नवाबों की राजधानी राजमहल से उठकर मुर्शिदाबाद चली गई तब यह वंश भी मुर्शिदाबाद में आ बसा। इन दोनों स्थानों में इनके पूर्वजों के विशाल महलों के खंडहर अब तक वर्तमान हैं। मुर्शिदाबाद में इस वंश की कई पीढ़ियों ने बड़े सुख से दिन व्यतीत किये थे। सेठ बालकृष्ण के पौत्र तथा गिरधारी लाल के पुत्र सेठ अमीनचंद के समय में बंगाल में अंग्रेज़ों का प्रभुत्व फैल चला था और इन्होंने इन नवागंतुक व्यापारियों की सहायता कर बंगाल की नवाबी को नष्ट करने में योग भी दिया था। उसी फल के स्वरूप इनकी वह दशा हुई थी जिसका वर्णन आगे किया जायगा । उस समय इनका मान भी विशेष था, 'अंग्रेज़ी इतिहासों में श्रोमीचंद तथा हंटर के इतिहास में उमाचरण नाम दिया गया है। फ़ारसी के इतिहासों में अमीनचंद नाम पाय जाता है। कहीं कहीं पुराने ग्रंथों में अमीरचंद नाम भी मिलता है। पर उस घराने के पुराने कागज़ात में अमीनचंद ही लिखा है। इनके पुत्र बाबू फतहचंद ने काशी आकर चौखंभे वाला मकान क्रय किया था जिसके बैनामे में, जो ३ शाबान १२०३ हि. (सन् १७८६ ई०) को लिखा गया था, फतहचंद वल्द अमीनचंद बिन गिरधारी लाल लिखा हुआ है। एक दूसरे कागज़ में फारसी अंश में अमीनचंद और उसी की हिन्दी प्रतिलिपि में, जो दोनों एक ही कागज़ पर हैं, अमीचंद लिखा है। अमीनचंद के दो पुत्रों का नाम फतेचन्द और हुकुमचन्द है, जिससे यह स्पष्ट है कि नाम में फारसी शब्दों का प्रयोग उस समय होने लगा 9