पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१६२

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१५२ भारतेंदु हरिश्चन्द्र गानेवाली कई वेश्याओं के नाम दिए गए हैं। ये सभी भारतेन्दु जी के दरबार में आती-जाती थीं। इन्हीं में से किसी के हाव-भाव पर भारतेन्दु जी को कोई नई उक्ति सूझी थी, जिस पर कविता बनाकर उपस्थित सज्जनों को सुनाते हुए उन्होंने कहा था कि "हम इन सबों का सहवास विशेष कर इसीलिये करते हैं । कहिए ! यह सच्चा मज़मून कैसे हो सकता था।' भाव उनका यही था कि वे उन सब में लिप्त नहीं थे। एक बार संध्या के अनंतर रामकटोरे के बाग में भारतेन्दु जी बैठे हुए थे, उनके पास ही माधवी तथा एक और सज्जन बैठे थे। कुछ ही देर बातचीत करने के बाद भारतेन्दु जी उठ कर बाग में चले गए और देर तक न लौटे तब उक्त सज्जन माधवी के कहने पर उन्हें ढूँढ़ने गये । वह स्वयं कहते थे कि उन्होंने बा० हरिश्चन्द्र को बाग के एक कोने में एक वृक्ष की डाल पकड़े हुए चन्द्रमा की ओर देखते हुए देखा और यह भी देखा कि उनकी आँखों से अविरल आँसू टपक रहे हैं तथा वे.कुछ मंद अलाप रहे थे। कुछ देर के अनन्तर वे स्वस्थ होकर पुनः अपने जगह पर आकर बैठ गये। पं० ईश्वरचन्द्र चौधरी प्रसिद्ध होमि थक डाक्टर हैं। इनकी अवस्था अब बहुत अधिक हो गई है और यह भारतेन्दु जी के समय उनके घर पर दवा करने के लिए बराबर जाते थे। भारतेन्दु जी इन्हें बहुत मानते थे और इन पर स्नेह रखते थे। यह दवा करने जनाने में भी जाते थे। एक बार भारतेन्दु जी की स्वर्गीय धर्मपत्नी की दवा हो रही थी। होमियोपैथी के अनुसार रोगी की चिंता आदि मानसिक विकारों से भी निदान किया जाता है इसलिए इन्होंने मेरी मातामही को चिंताग्रस्ता पाकर उसका कारण पूछा जिससे मालूम हुआ कि उनके प्रति पति की