पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१८६

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। इस मित्रगण १७७ की शादी कर दी थी। सन् १८६५ ई० में बा० राधाकृष्ण दास जी का जन्म हुआ। दूसरे ही वर्ष इनके पिता की मृत्यु होगई और यह अपनी माता के साथ भारतेन्दु जी के गृह ही में रहने लगे। भारतेन्दु जी का इनपर वात्सल्य स्नेह था और वह इन्हें बच्चा कह कर पुकारते थे, जिससे इनका दूसरा नाम ही 'बच्चा बाबू' होगया था। इन्हें शिक्षा देने का भारतेन्दु जी स्वयं ध्यान रखते थे। भारतेन्दु जी की कन्या श्रीमती विद्यावती, जो इस जीवनी-लेखक की माता थीं, इनसे बहुत हिली-मिली थीं। ये लोग एक दूसरे को कभी-कभी चिढ़ाया भी करते थे कार्य के भी भारतेन्दु जी ही उत्तेजक थे। उन्होंने इन लोगों को परस्पर चिढ़ाने के लिये दोहे बना दिये थे । बा० राधाकृष्ण दास स्वर्गीया विद्यावाती देवी को यह कह कर चिढ़ाते थे- विद्या तुम्हरे नाम पै, मूरखता की खानि । पढ़त लिखत कछु नाहिं तुम, निज सरूप पहिचानि ॥ विद्या विद्या नहिं पढ़े, तो झूठो है नाम । तासों तोहि पढ़नो उचित, छोड़ि और सब काम ।। सरस्वती की ह्र बहिन, विद्या नाम कहाइ । • पढ़ति नहीं खेलत फिरत, नीचे ऊपर धाइ ।। विद्या तुम धूमिन भई, खात बहुत हो पान । जात नहीं स्कूल को, बात लेति नहिं मानि ।। उत्तर में वे भी इन्हें यह कहकर चिढ़ाती- कक्का तुम इतने बड़े, ढोढक भये सयान । पै कुछ भी अक्किल तुम्हें, आई नहीं सुजान ।। हिन्दी की चिन्दी करी, अँग्रेजी की धूर । लगे पढ़न अब फारसी, आयो कछ न सहूर ।। १२ ,