पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/१९२

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T दान की स्फुट ताता १८३ इससे क्या फायदा होगा। हर एक वस्तु का नाश अवश्यंभावी है, इसमें किसी का दोष क्या ? इसके अनन्तर उन्होंने वाल्मीकीय रामायण का एक श्लोक पढ़ा था, जिसका आशय यह है कि जो वर्तमान है उसका अवश्य नाश होगा। एक बार भारतेन्दु जी ने दो मनुष्यों की उदारता तथा उच्चाशयता का वर्णन किया था, जिसमें एक तो मुसलमान कवि ख्वाजा वजीर. थे और दूसरे पटना के कोई कमिश्नर साहब थे । वे कहते थे कि ख्वाजा वजीर अपना दीवान अपने उस्ताद 'नासिख' को दिखलाने के लिये ले गए, तब उसे देखने के अनन्तर उनके मुख से अनायास ही एक आह निकल गई, जिससे ख्वाजा साहब ठक्क से हो गये। उन्होंने उस्ताद से इस ठंडी साँस लेने का कारण पूछा, जिस पर उन्होंने उत्तर दिया कि तुम्हारा दीवान इतना उत्तम बना है कि शायद ही अब कोई मेरे दीवान को देखेगा । ख्वाजा ने उस दीवान को अपने उस्ताद के हाथ से लेकर यह कहते हुए फाड़ कर टुकड़े टुकड़े कर डाला कि जिस चीज़ से उस्ताद को रंज पहुँचे उसे मैं नहीं रख सकता। ख्वाजा की मृत्यु पर उनके मित्रों तथा शिष्यों ने उनके ग़ज़लों का संग्रह कर उसे 'दफ्तरे-फसाहत' नाम से प्रकाशित किया था। दूसरे सज्जन पटना के कमिश्नर थे, जिनके एक मित्र और कृपापात्र उसी जिले के एक बड़े रईस थे। एक दिन वह कमिश्नर साहब से मिलने आए। यह बैठे हो हुए थे कि कुछ देर के बाद कमिश्नर यह कह कर दूसरे कमरे में चले गए कि मैं अभी आता हूँ। वहीं टेबुल पर एक बहुत कीमती जेबी घड़ी रक्खी हुई थी, जो समय पर अलार्म भी देती थी। होनहार वश बाबू साहब ने वह घड़ी चुपके से उठा कर अपने जेब में रख ली और साहब से बिदा होकर बाहर निकले । जब