पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२३६

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२२८ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का सिद्धक बन कर कृष्ण जी से उनकी पूजा कराना और अन्त में मिलना दिखलाया गया है। छब्बीस पदों में प्रातःस्मरण मंगल पाठ है, जिनमें प्रत्येक पद का मंगल शब्द से आरंभ हुआ है। दस पदों में भीष्म स्तवराज बना है । श्रीनाथ स्तुति में छं छप्पय और अपवर्ग पंचक में पाँच छप्पय हैं। प्रथम में श्री कृष्णजी की और दूसरे में श्री कृष्ण जी, श्री राधिका जी तथा श्री वल्लभाचार्य जी की वन्दनाएँ हैं। 'श्रीसीतावल्लभस्तोत्र' संस्कृत में है और इसमें तीस श्लोक हैं । 'वर्षाविनोद' बड़ा संग्रह है, जिसमें एक सौ चौंतीस पद हैं प्रारंभ के कुछ पद वर्षा में गाने योग्य हैं, और बाद के अन्य पद लीला सम्बन्धी हैं। इनमें कजली, मलार, खेमटा, ग़ज़ल, हिंडोला आदि हैं । संस्कृत की भी दो कजलियाँ हैं । इनमें 'काहे तू चौका लगाये जयचॅदवा', 'टूटै सोमनाथ को मंदिर केहू लागै न गोहार', 'देखो भारत ऊपर कैसी छाई कजरी', आदि भारत की राजनैतिक तथा जातीय दुर्दशा और 'धन धन भारत के सब छत्री जिनकी सुजस धुजा फहराय' आदि पूर्व गौरव बतला रहे हैं। श्रीकृष्ण, राधा जी तथा चंद्रावली जी के जन्मोत्सव के पद भी हैं। अंतिम के लिये लिखा है कि 'प्रगटी सखी स्वामिनी की ब्रज सब मिलि नाचत गाई।' यहाँ भी स्वामिनी श्री राधिका जी हैं। एक पद इसका यहाँ दिया जाता है- हमारी श्री राधा महरानी। तीन लोक को ठाकुर जो है ताहू की ठकुरानी ॥ सब व्रज की सिरताज लाडिली सखियन की सुखदानी । 'हरीचंद' स्वामिनि पिय कामिनि परम कृपा की खानी ।। विहारी की सतसई के परिचय के लिये उसका नाम मात्र ही पर्याप्त है । इसके बहुत से दोहों पर पठान की बनाई हुई कुडलियाएँ