पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२५६

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२४८ [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बालाबोधिनी सन् १८७४ ई० के जनवरी महीने से भारतेन्दु जी ने स्त्री- शिक्षोपयोगी 'बाला-बोधिनी' नामक एक मासिक-पत्रिका निका- . लना आरम्भ किया। यह डिमाई अठपेजी का एक फार्म प्रतिमास निकलता था । भारतसरकार ने इसकी सौ प्रतियाँ खरीदकर इस पत्र की उपादेयता स्वीकार की थी। इस पत्र के मुखपृष्ठ पर सितम्बर सन् १८७० बुधवार को पण्डित विश्वेश्वर प्रसाद काश्मीरी जो कि श्रीयुत बा० हरिश्चन्द्र की पाठशाला के मैनेजर अर्थात् कार्या- ध्यक्ष थे वे उस स्कूल से उक्त बाबू साहिब की अाज्ञा भंग करने के निमित्त निकाल दिए गए। उस दिन उन्होंने सम्पूर्ण लड़कों के गृह पर जा जा करके कहा कि बाबू हरिश्चन्द्र का नाम पाठशाले से उल्लेख कर दिया गया और तुम लोग अब उनके पाठशाले में जो उन्होंने अपनी बाग में किया है (क्योंकि बा० बेणीप्रसाद भी जिनके गृह में पाठशाला थी उन्हीं से मिल गए हैं और स्कूल को अपने घर से उठवा दिया ) न जाओ।' हरिश्चन्द्र मैगजीन पृ० १८५ से उद्धृत् 'हे भाइयो तुम्हारे मन में जो अनेक कल्पना धीरे धीरे उठा करती हैं उन पर सहज ही में विश्वास कर लेते हो और जो अनेक झूठे मूठे मनोरथ हृदय में उत्पन्न होते हैं बड़ी अभिलाषा से उनका पीछा करते हो और इस बात की अाशा रखते हो कि अल्पावस्था में जो बात नहीं प्राप्त हुई वह अधिक अवस्था में हो जायगी और आज के दिवस पर्यंत न्यूनता रह गई है वह कल पूरी हो जायगी तो तुमको चाहिये कि मकरन्द देश के राजकुमार धैर्यसिंधु के इतिहास को ध्यान देकर सुनो। १जुलाई सन् १८७५ ( वि० २ सं०७ ) की बालाबोधनी से कुछ अंश उद्धृत किया जाता है-हे सुमति, जब बालक तुम्हारा भली