पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२५८

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अलोचना] २५१ ने समग्र भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। इस प्रकार भारतीय विचार धारा में युरोपीय विचार धारा का संमि- श्रण उन्नीसवीं शताब्दि ही से अनिवार्य रूप से होने लगा था, और जिस प्रकार उस समय तक भारतीय सभ्यता में पारसीय सभ्यता का पूर्णतः सम्मिश्रण हो चुका था उसी प्रकार आज यह कहा जा सकता है कि यूरोपीय सभ्यता भी उसमें पूर्णरूपेण व्याप्त हो चुकी है। संतोष इतना ही है कि सबको अपना हुई भी भारतीय सभ्यता आज भी अपनी विशेषता नहीं खो बैठी है। अँगरेजी प्रभुत्व के जम जाने पर सन् १८३४ ई० में प्राप्त हुए इंडिया बिल में पहिले-पहिल मि० चार्ल्स ग्रांट ( बाद के लॉर्ड ग्लेनेल्ग ) ने अँगरेजी भाषा के माध्यम द्वारा भारतवासियों को शिक्षित बनाकर ऊँची सरकारी नौकरी देने का प्रस्ताव किया था। लार्ड मेकॉले ने उसी समय इस प्रस्ताव का समर्थन किया था और उन्होंने बड़े लाट की काउंसिल के प्रथम लाँ मेंबर होने पर इस पर विशेष जोर भी दिया था। इनका मत था कि 'देशियों को अँगरेजी का अच्छा विद्वान बनाना सम्भव है और इसलिए हम लोगों का यही प्रयत्न होना चाहिए।' लार्ड डलहा- उजी के समय भारत के सेक्रेटरी ऑव स्टेट सर चार्ल्स वुड ( बाद के लॉर्ड हैलिफैक्स ) ने समग्र भारत की शिक्षा के लिए एक बृहत् स्कीम बनाकर भेजा था जिसमें विश्वविद्यालय, विद्या- लय, सहायता प्राप्त स्कूल तथा वर्नाक्यूलर पाठशालाएँ स्थापित करने का पूरा आयोजन था। लॉर्ड डलहाउजी ने अविलंब ही इस कार्य में हाथ लगाया और पब्लिक इंस्ट्रकशन डिपार्टमेंट खोल दिया। अगरेजी माध्यम द्वारा हिन्दुस्तानियों को सुशिक्षित करने के पहिले भी कई गवर्नर देशीय भाषाओं की उन्नति के लिए.