पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२८

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१५ पूर्वज-गण नवाब और अंग्रेजों के मध्य का यह विरोध अब बहुत बढ़ गया था और साथ ही क्लाइव भी युद्ध करने को अब तैयार था । नवाब सिराजुद्दौला के दरबार में इसी समय एक षड्यंत्र का प्रारंभ हुआ। मानिकचंद, राय दुर्लभ, जगत सेठ के पुत्र महताबराय तथा स्वरूपचंद, मीर जाफर आदि प्रधान सरदार- गण सिराजुद्दौला से बिगड़ गए थे और उसे गद्दी से उतारना चाहते थे। २३ अप्रैल को यार लतीफ खाँ ने वॉट्स से एकांत मिलने के लिए लिखा था। यह दो हजारी मंसबदार था और सेठों से भी.उनके रक्षार्थ वेतन पाता था। वॉट्स ने अमीनचंद को यार लतीफ से भेंट करने को भेजा। उसने कहा कि यदि अंग्रेज़ उसको नवाब बनाने में सहायता दें तो वह उनके इच्छा- नुकूल संधि कर लेगा और रायदुर्लभ तथा सेठों ने उसका साथ देने का प्रण किया है। वॉट्स ने इस षड्यंत्र को पसंद कर लाइव को लिखा और वह भी इससे बहुत प्रसन्न हुआ। परंतु इस बातचीत के दूसरे ही दिन मीर जाफर ने भी यही प्रस्ताव किया। यार लतीफ से इसका प्रभुत्व अधिक था, इससे अंत में इसे ही नवाब बनाने का निश्चय हुआ। लाइव यह समाचार पाकर बिना विलंब किए कलकत्ते लौट आया और.पहली मई की कमेटी में मीर जाफर की सहायता कर उसे गद्दी पर बिठाने तथा सिराजुद्दौला को गद्दी से उतारने का निश्चय किया। संधिपत्र की जो पांडुलिपि तैयार हुई थी उसमें चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं शती का सारांश इस प्रकार था कि कलकत्ते की लूट में जो हानि हुई थी उसकी पूर्ति के लिए कंपनी को एक करोड़, अन्य अंग्रेजों को पचास लाख, हिन्दू मुसलमान निवासियों को बीस लाख और आर्मीनियों को सात लाख मिलना निश्चित किया जाय । १४ मई को यह संधिपत्र