पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/२९०

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ल्मानी पड़ाव चरित्र चित्रण] २८३. अन्त में वह इसी प्रकार के एक धावे में सूर्यदेव को कैद कर लेता है और वह वहीं कैद में मारा जाता है। एक पागल-पात्र मुस- में जाकर उनकी मृत्यु का पता लगाता है और उसी से राजा सूर्यदेव के पुत्र तथा धर्मपत्नी रानी नीलदेवी को सूचना मिलती है। कुमार सोमदेव अपने पिता के समान ही वीरता के साथ सम्मुख युद्ध की घोषणा करता है पर रानी नीलदेवी उसे इस कार्य से रोकती है। वह जानती है कि सम्मुख युद्ध में ये शत्रु से पार न पावेंगे और वह पति का बदला पाने तथा उनके शव के साथ जल सकने से वंचित रह जायगी। नाटककार ने ऐसा उससे कहला भी दिया है । अंत में वह वीर नारी 'शठं प्रति शाठ्यं कुर्यात्' नीति के अनुसार षड्यंत्र रचकर उसे मार डालती है । क्रूर आततायियों को उन्हीं के शस्त्रों से मार डालना प्रतिहिंसा नहीं है। मौलिक अपूर्ण नाटकों में प्रेमयोगिनी तथा सती सावित्री हैं। प्रथम में काशी के अनेक प्रकार के लोगों की बोलचाल, स्वभाव आदि का परिचय दिया गया है। इसमें चरित्र-चित्रण करने का प्रयास विशेष नहीं है पर तब भी मन्दिर के साधारण दर्शन करने वाले बगुला भक्त, दलाल, गंगापुत्र, गुण्डे, भोजनभट्ट ब्राह्मण आदि के चित्रं उतारे गए हैं। इसमें रामचन्द्र नाम से अपने विषय में भी भारतेन्दु जी ने कुछ लिखा है । सती प्रताप में सती सावित्री नायिका तथा सत्यवान नायक हैं । दोनों में प्रेमांकुरण एक दूसरे को वन में देखने से होता है। दोनों ही मनसा एक दूसरे को वरण करते हैं । सावित्री की बातों से पति के प्रति पत्नी का धर्म बतलाया है तथा माता-पिता की आज्ञा भी मान्य बतलाई गई है। सखियों के योगी सत्यवान पर आक्षेप करते हुए अन्य राजकुमारों का उल्लेख करना सुन कर सावित्री का क्रोध दिखलाना सहज