पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३१३

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खड़ी बोली तथा उर्दू कविता] ३०७ धर्माधता रत्ती भर भी नहीं थी और सभी धर्मों के उपदेशों को वे उसी 'एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति' (श्री कृष्ण ) समग्र विश्व के स्रष्टा को पाने का साधन समझते थे। वे कहते हैं- तेरा दम भरते हैं हिन्दू अगर नाकूस बजता है। तुझे ही शेख ने प्यारे अज़ाँ देकर पुकारा है। जो बुत पत्थर हैं तो काबः में क्या जुज़ खाक पत्थर है। बहुत भूला है वह इस फक में सर जिसने मारा है। न होते जिलव:गर तुम तो यह गिरजा कब का गिर जाता। निसारा को भी तो आखिर तुम्हारा ही सहारा है ।। तुम्हारा नूर है हर शै में कह से कोह तक प्यारे। इसी से कह के हर हर तुमको हिन्दू ने पुकारा है। और अंत में कहते हैं कि- गुनह बख्शो रसाई दो रसा को अपने कदमों तक । बुरा है या भला है जो कुछ है प्यारे तुम्हारा है कैसी सीधी सीधी बातें हैं, जो दिल पर असर कर जाती हैं। कठहुन्जती भले ही कोई कर ले पर ऐसे कथनों को कोई काट नहीं सकता है। सब झगड़े की बात को सुलझाते हुए भी अन्त में यह कहना कि 'जो कुछ है तुम्हारा ही है' कितनी नम्रता तथा भक्ति- श्रद्धापूर्ण है। कुछ कविगण आहो नाले वगैरह का कई तरह से वर्णन कर जाते हैं, पर उनका दिल पर असर नहीं होताक्योंकि उनमें उनका दिल ही नहीं रहता। वे केवल रूढ़ि परम्परा के अनुसार ऐसी शब्दावली भले ही प्रयुक्त करें और सुननेवाले भी सुन लें कि उसने. ऐसे आह मांस, वैसे नाले उड़ाए, पर उन पर ऐसी खबरों का असर नहीं होता, वे उसके साथ समवेदना नहीं प्रगट कर सकते। परन्तु जब कवि कुछ ऐसी बात कहता है कि जिससे श्रोताओं 11