पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३२६

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३२० [भारतेन्दु हरिश्चन्द्र अगरेजी नाटक का अनुवाद है ; इनके अनुवादों में मौलिक ग्रंथों ही का आस्वादन मिलता है। गीतगोविन्दकार जयदेव जी की कविता के लालित्य और प्रसाद गुण से संस्कृत का कौन प्रेमी परिचित नहीं है। संगीत- प्रेमियों को भी इनकी रचना से जो आनन्द मिलता है वह किसी दूसरे कवि की रचना से नहीं मिलता। इसी सुप्रसिद्ध ग्रन्थ गीत-गोविन्द की अष्टपदी का 'गीत-गोविन्दानन्द' नाम से भारतेन्दु जी ने अनुवाद किया है । इसके विषय में एक समा- लोचक लिखते हैं 'भारतेन्दु जी के अनुवाद में जो सरसता और सुन्दरता है वह अन्य अनुवादों में नहीं। आपके अनुवाद में संगीत का मजा भी फीका नहीं होने पाता, वरन् ब्रजभाषा में होने के कारण मौलिक ग्रंथ से टक्कर लेता है।' गीतगोविन्द के दो एक उदाहरण लीजिए । मंगलाचरण का प्रथम श्लोक इस प्रकार है। मेधैर्मेदुरगंबरंवनभुवः श्यामास्तमालद्र मैः। नक्त भीरुरयं त्वमेवतदिमंगधेगृह प्रापय ।। इत्थंनंदनिदेशतश्चलितयोः प्रत्यध्व कुलद्र मं । राधामाधवयोर्जयंति यमुनाकूले रहः केलयः ।। भारतेन्दु जी ने एक सवैये में इसका अनुवाद किया है, जिसके पढ़ने से साफ मालूम होता है कि इसमें अनुवाद करने का लेशमात्र प्रयास नहीं है । भाषा कितनी मधुर है और मूल- कवि के सभी भाव आ गए हैं मेघन सों नभ छाइ रहे बन भूमि तमालन सों भई कारी। साँझ भई डरिहै घर याहि दया करिकै पहुँचाबहु प्यारी ।।