पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/३९२

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३८६ [ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र २-श्रीगोस्वामीराधाचरण जी को लिखा गया श्रीकृष्ण हम लोगों का बड़ा दिन अनेक कोटि साष्टाङ्ग दंडवत् प्रणामानन्तर निवेदयति- महात्माओं ने जो पद बनाए हैं उनमें घियापीतम का जो संवाद है वा अन्य सखियों की उक्ति है उन्हीं सबों के यथास्थान नियोजन से एक रूपक बने तो बहुत ही चमत्कार हो अर्थात् नाटक की और जितनी बातें हैं, अमुक पाया गया इत्यादि अंक दृश्य इत्यादि मात्र तो अपनी सष्टि रहै किन्तु संवाद मात्र उन्हीं प्रवीनों के पदों की योजना से हो । जहाँ कहीं पूरा पद रहै वहाँ परा कहीं आधा चौथाई एक टुकड़ा जितना आवश्यक हो उतना मात्र उनमें से ले लिया जाय । यह भी यों ही कि एक बेर पदों में से चुनकर अत्यन्त चोखे चोखे जो हो वा जिनमें कोई एक टुकड़ा भी अपूर्व हो वह चिन्हित रहै फिर यथास्थान उनकी नियोजना हो। ऐसा ही गीतगोविन्द से एक संस्कृत में हो, बहुत ही उत्तम ग्रंथ होगा। आप परिश्रम करें तो हो मैं तो ऐसा निबल हो गया हूँ कि बरसों में सुधरूँगा। दासानुदास हरिश्चन्द्र ३-उक्त ही सज्जन को लिखा हुआ श्री हरिः। अनेक कोटि साष्टाङ्ग दंडवत् प्रणामानन्तरं निवेदनम् - आज के भारतेन्दु में प्रथम पत्र आर्यसमाजियों के विषय में V