पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/४०

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. पूर्वज-गण २७. आज्ञा लेकर जब ये तीनों सज्जन हाथी पर सवार होकर चले,. तब बा० हर्षचंद जो सरपंच थे, मध्य में बैठे थे और उनके दोनों ओर दोनों पंच बैठे थे। मोरछल हो रहा था, बाजे बज रहे थे, सारे नगर की प्रजा साथ में खुशी मनाती हुई चल रही थी और स्त्रियां खिड़कियों से पुष्पवर्षा कर रही थीं। इसी धूम-धाम की तैयारी के साथ वह जलूस नगर भर में घुमाया गया था।' मेरे यहाँ एक पुराना जमादार नौकर था, जिसका नाम जयगोविंद सिंह था। इसके पिता दुर्गासिंह प्रसिद्ध तलवरिया थे, जिन्होंने काशी में लड़ाई-भिड़ाई में अच्छा नाम प्राप्त किया था और ईश्वरगंगी मुहल्ले के (मनुष्यरूपी) एक बाघ कहलाते थे। इस वृद्ध नौकर की लगभग १५ वर्ष हुये मृत्यु हो गई । वह इस हड़ताल, बड़े बलवे तथा राममन्दिर के बलवे के बारे में छन्दों तथा अपनी भाषा में बहुत-सा हाल हम लोगों को लड़कपन में सुनाया करता था, पर उस समय उन बातों का कुछ महत्व नहीं जान पड़ता था। इस पंसेरी विषयक कुछ अशजो ध्यान में आता है, वह इस प्रकार है- देबी सेन बंगले घबडाए । तोप तिलंगा माँगत भए । बड़ा साहब बहुत . समझाया । गुस्सा हो बंगले पर आया ॥ चढ़ा सिपाही लै पच्चासा । धै बाँध के रक्खा पासा ॥ तीन कम्पनी एक कप्तान । चौक चाँदनी पहुँचे भान ॥ कासी क लोगन जाफत किया । ईटा जूना भडाभड़ दिया । धर धर पकड़ सो धर भई सोर । पूरब पच्छिम दूनो ओर ।। जुलहा छोड़ ले ताना बाना । हमको है पंचायत जाना ।। सेख सैयद मुगल पठान । हारे जीते कसम कुरान ॥ हिजड़ चमक घर बैठे जाय । देखो मुश्रा यह साहब श्राय ।। चारो बरन छतीसो कोम । हलाखोर बस खोमो डोम || कैदी छोड किया सब ठंढा । सौ के ऊपर ग्यारह गंडा ॥