पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/५८

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पूर्वज-गण गई। कवित्व शक्ति इस अवगाहन से चैतन्य हो उठी और उन्होंने तुरन्त एक पद बनाया जिसका अन्तिम पद यों है- गिरिधरदास उबारि दिखायो भवसागर को नमूना । इस मेले के सिवा अन्य त्योहारों तथा अपने और पुत्रों के वर्ष गाठों पर भी ये जलसे कर जाति-भाइयों का सत्कार किया करते थे। इसी प्रकार सुकवियों, लेखकों तथा विद्वानों का भी खूब आदर-सत्कार करते थे। इनकी सभा सरदार कवि, बाबा दीन-. दयाल गिरि, पं० ईश्वरदत्त जी 'ईश्वर' पं० लक्ष्मीशंकर व्यास कन्हैयालाल लेखक, माधोराम जी गौड़, गुलाबराय नागर तथा बा० बालकृष्ण दास टकसाली आदि से सुशोभित रहती थी। एक बार ठाकुर कवि के शिष्य विस्वेश्वर शर्मा मिश्र 'ईश्वर' जी कवि मिश्र को एक चश्मे की आवश्यकता हुई थी तो आप एक . कवित्त बना लाए जिसका अन्तिम चरण यों है- खमसा मुखी के मुख मनसा लगाइवे को। एहो धनाधीस हमें चाहत एक चसमा ।। इन्हीं 'ईश्वर' कवि ने भारतेन्दु जी के जन्म पर श्रीभश्वागवत की पुस्तक के लिए प्रार्थनापत्र संस्कृति-हिन्दी दोनों भाषा की कविता में लिख कर दिया था और बा० गोपालचन्द्र जी ने बड़े आदर तथा श्रद्धा से उक्त पुराण उन्हें दिया था। उक्त पत्र कवि- वचनसुधा के जि० २ नं० २१ में प्रकाशित किया गया था। 'शंभु' उपनाम के एक कवि ने एक अलंकार ग्रंथ ही स्यात इनके लिये बनवाया था, जिसके कुछ पद प्राप्त हैं। एक छंद की अन्तिम पक्ति इस प्रकार है- "कहै 'संभु महाराज गोपालचन्द जू धरमराज की सभा ते रावरी सरस है।" बा० गोपालचन्द्र जी ने स्वरचित बलराम कथामृत के आरम्भ में देवताओं द्वारा विष्णु भगवान को चौरा-