पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६५

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भारतेंदु हरिश्चन्द्र साथ साथ सौंपादन करते हुए नायिकाभेद, जो नहीं लिखा गया था, भी देते जाते थे और उदाहरण में अपनी तथा अपने पिता की रचनाओं को देते थे । यह अपूर्ण ही रहा गया । हरिश्चन्द्र नेग जोन नं. ६ से एक उद्धृत किया जाता है । जाहि विवाह दियो पितु मातु तै पावक साखि सबै जग जानी ; साहब सो गिरिधारनजू' भगवान समान कहैं मुनि ज्ञानी ।। तू जो कहै वह दच्छन है तो हमै कहा नाम है बाम अयानी । भागन सों प त ऐसे मिलै स बहीन को दच्छिन जो सुखदानी । -ग्रीष्म वर्णन-इसका विषय इसके नाम से ही ज्ञात' होता है ! भारतेन्दु जी ने इसे स्वरचित भूमिका सहित हरिश्चन्द्र मेगजीन के भाग १ सख्या = में प्रकाशित किया है। उदाहरण- जगह जराऊ जामें जड़े हैं जवाहिरात, जगम गजोति जाक' जग लौ जमति है। जामैं जदुजा न जान प्यारी जात रूप ऐसी, जग ख बाल ऐसी जोन्ह सी जगति है। 'गिरिधरदास' जोर जबर जवानी को है, जोहि जोहि जलजहू जीव में जकति है। जगत के जीवन के जियसों चुराय जाय, जोए जोपिता को जेठ जरनि जरति है। -मत्स्य कथामृत-इसमें मत्स्यावतार की कथा संक्षेप में कही गई है। इसमें १५ पद हैं और पाँच प्रकार के छंदों का प्रयोग किया गया है। यह सं० १०१६ के भाद्रपद में समाप्त हुआ था। ७-कच्छा कथामृत-इसमें कच्छप देव की कथा विस्तार- पूर्वक कही गई है। चौदह प्रकार के छंदों के ४२५ पदों में यह ग्रंथ सं० १९०८ की कार्तिक वदी ८ को समाप्त हुआ था।