पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/६८

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प वंज-गण इल्वलब्ध आदि वर्णित है । २७० दोहों तथा ८ कवित्तों में विदुर जी द्वारा नीति कहलाई गई है। ब्राह्मणों द्वारा २०० पदों में वेद, पुराण, दर्शन, स्मृति, आयुर्वेद आदि का सार दिया गया है। ७५० पदों में श्रीकृष्ण जी से ज्ञान तथा भक्ति पर उद्धव को उप- देश दिलाया गया है । इस ग्रंथ में रचनाकाल नहीं दिया गया है पर बा० राधाकृष्णदास ने लिखा है कि यह ग्रंथ १६०६ से १९०८ के बीच में लिखा गयाहै । पर यह ठीक नहीं है क्योंकि भारतेन्दु जी की 'लै ब्योड़ा ठाढ़े भए' इत्यादि दोहों की रचना उनके कम से कम पाँच वर्ष से अधिक अवस्था होने पर ही हुई होगी। भारतेन्दु जी का जन्म सं० १६०७ वि० में हुआ था इससे इस ग्रंथ की रचना सं० १६१२, १३ तक या बाद तक अवश्य होती रही होगी। इसकी हस्तलिखित प्रति सं० १९२७ की लिखी है। उदाहरण- किधौं अनुराग राजधानी सरसानी चारु, लताधौं प्रवाल की रसाल दरसात हैं। कुमकुम सिंधु किधौं रुद्र रस कोस बर. किधौं इन्द्र गोपका समूह सरसात है ।। 'गिरिधरदास' किधौं उजराज पाको चारु, मंगल की सेज रूप मंगल विभात है। किधौं कामिनी के कंठ मानिक जटितहार, बानिक परम परमानि कल खात है। बमकी अनुजा दनुजारि-प्रिय जग जाके जपें सो लखे जमना पटरानी अहै 'गिरिधारन' की लखि धारन पाय सकै जमना । भुति गावत है महिमा महिजा समदान दया अज संजम ना । प्रति स्याम सरूप सो संजमनी संजमनी समनी जमना ।