पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/८४

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भारतेंदु हरिचन्द्र मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या के स्थान पर उतरे । उक्त बाबू साहब का उदयपुर में रहना एक सप्ताह के लगभग हुआ और वे कवि- राज श्री श्यामलदास जी के द्वारा श्रीमान यावदार्य कुल दिवाकर के चरण-कमलों तक पहुँचे । एक दिन श्री अधीश ने उक्त बाबू साहब को जगन्निवास के महलों में याद किया था। वहीं काव्य- शास्त्र सम्बन्धी प्रसंग आने पर दो समस्या तो कवि जयकरण जी ने और दो समस्या बाट कृष्णसिंह जी ने और तीन समस्या श्रीमान् अधीश ने पृत्ति करने को दी कि उक्त बाबू ने वहाँ ही निम्नलिखित प्रत्येक समस्या के प्रत्येक छंद की चार चार मिनट के समय में पत्ति की थी। श्रीमान यावदार्य कुलदिवाकर ने विदा में बाबू साहब को ५०० का खिलत दिया । उक्त बाबू साहब तार २४ दिसम्बर को उदयपुर से चित्तौर को रवाना हुये। भारतेन्दु जी ने महाराणा साहब की समस्याओं की दो दो और अन्य सज्जनों की एक एक पूतियाँ की थी। उनमें से कुछ यहां उद्धृत की जाती हैं। समस्या १ समस्या (आम्रान्योक्ति ) कवि जयकरण जी की। आसी ना तिहारे ये निवासा कल्पतरु के । राधा श्याम से सदा वृन्दाबन बास 'करें, रहें निहचिंत पद श्रास गुरुवर थे। चाहें धन धाम ना पाराम मो है काम, 'हरिचन्द जू' भरोसे रहैं नन्द राय घर के ।। एरे नीच धनी हमें तेज तू दिखावै कहा, गज परवाही नाहिं होहिं कबौं खर के। होइ लै रसाल तू भलेई जग जीव काज, भासी ना तिहारे ये निवासी कल्पतरु के।।