पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/८९

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पूर्वज-गण और सभी छोटे बड़े से समान रूप से मिलते थे। कोई इनका कितना भी नुकसान करे पर यह कुछ न कहते थे, वरन अन्य लोगों के उसकी भर्त्सना करने पर यह टोक देते थे। एक सजन, जो स्यात् अभी तक जीवित हैं प्रायः इनकी कुछ न कुछ वस्तु अवसर पाते ही लेकर चल देते थे। पकड़े जाने पर लोग उनकी दुर्गति करते थे और बाबू गोकुलचन्द्र उनकी ड्योड़ी भी बंद कर देते थे पर वह महापुरुष जब भारतेन्दु जी बाहर से घर आने लगते तब साथ लगे हुए चले आते। ऐसा बीसों बार हुआ तब भारतेन्दु जी ने भाई साहेब से कहा कि 'भैया' तुम इनकी ड्योड़ी न बद करो, यह शख्स क़द्र करने योग्य है, इसकी बेहयाई है कि इसे कलकत्ते के अजायवखाने में रखना चाहिये। पर दुःख कातर सज्जन ही परोपकार में रत रह सकता है। सन् १८७२ ई० में बंबई प्रांत के खान देश के कई ग्रामों में इतनी वृष्टि हुई किकई गाँव बह गए तथा सैकड़ों मनुष्य मर गए और सहस्त्रों मनुष्य गृह तथा सामान से रहित हो गए। भारतेन्दु जी ने यथाशक्ति स्वयं सहायता की तथा काशी में धूमकर सहायतार्थ धन एकत्र किया था। उसी वर्ष काशी में गंगाजी में ऐसी बाढ़ आई थी कि पक्के संगीन मकान धंसे जाते थे और नगर के कितनी सड़कों तथा गलियों में जल भर गया था। बिना नाव के कहीं जाना आना और प्राण की रक्षा करना कठिन हो रहा था। इस कारण इन नावों का किराया बहुत बढ़ गया था और तिसपर भा कठिनता से नावें मिलता थीं। इन्होंने काशीराज से प्रार्थना कर गृह-विहीन लोगों को नदेसर की कोठी में स्थान दिलाया और गंगाजी में विनयपत्र डलवाया था। एक बार जाड़े की रात्रि में कहीं यह बाहर घूमने जा रहे थे कि मार्ग में इन्हे एक दरिद्र सोता हुआ मिला, जो जाड़े के कारण