पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गान्धी जी की हत्या के एकदम बाद का समय दिल्ली, ३० जनवरी, १९४८ भाइयो और बहनो, आपने मेरे प्यारे भाई पं० जवाहरलाल नेहरू का पैगाम सुन लिया । मेरा दिल दर्द से भरा हुआ है। क्या कहूँ क्या न कहूँ ? जबान चलती नहीं है । आज का अवसर भारतवर्ष के लिए सब से बड़े दुख, शोक और शर्म का अवसर है । आज चार बजे में गान्धी जी के पास गया था और एक घंटे तक मैने उनसे बात की थी। वह घड़ी निकालकर मुझ से कहने लगे कि मेरा प्रार्थना गया है। अब मुझे जाने दीजिए। तो वह भगवान के मन्दिर की तरफ अपने हमेशा के समय पर चलने के लिए निकल पड़े । तब मैं वहाँ से अपने मकान की तरफ चला । मैं मकान पर अभी पहुँचा नहीं था कि उतने में रास्ते में एक भाई मेरे पास आया। उसने कहा कि एक नौजवान हिन्दू ने गान्धी जी के प्रार्थना की जगह पर जाते ही अपनी पिस्तौल से उन पर तीन गोलियां चलाई, वह वहाँ गिर पड़े और उनको वहां से उठा कर घर में ले जाया गया है। मैं उसी वक्त वहां पहुंच गया। मैंने उनका चेहरा देखा। वहीं चेहरा था। वैसा ही शान्त चेहरा था, जैसा हमेशा रहता था। ठीक वही चेहरा था । और उनके दिल में दया और माफी के भाव अब भी उनके चेहरे से प्रकट भा० ७