पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१२६

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पेप्सू का उद्घाटन, पटियाला 'स्तान के बाहर हिन्दुस्तान की संस्कृति फैलाई थी। उसी हिन्दुस्तान में उनकी सन्तान को राज्य करने का मौका मिला था। जब मैं पिछले सितम्बर-अक्तूबर में इधर आया था, तब आप देखते थे कि पंजाब की क्या हालत थी और हिन्दुस्तान की क्या हालत थी। जब पंजाब के दो टुकड़े हुए, तब पंजाब पर जो मुसीबतें आई थीं, वे किसने नहीं देखी है ? कौन ऐसा दुष्ट और क्रूर है, जिस का हृदय रोता नहीं था। मेरा दिल तो तब रात-दिन रोता रहा है। मुझे वह दिन याद है, जब दस-बारह लाख मुसलमान इधर से पाकिस्तान जा रहे थे और उन के जाने का एक ही रास्ता अमृतसर शहर के बीच में से था। सिक्ख लोगों ने इन्कार किया कि वे इधर से नहीं जा सकते। उधर पश्चिमी पंजाब के एक हिस्से में हमारे हिन्दू और सिक्स भाइयों को दस-बारह लाख की कतार थी, उसको वहाँ पाकिस्तान के मुसलमानों ने रोक लिया । उस झगड़े में लाखों आदमी मुसीबत में आ वे न इधर जा सकते थे, न उधर । कैम्पों में रोग फैल रहा था और ऊपर पानी पड़ रहा था। सब लोगों को बहुत कष्ट हो रहा था । उस समय मैने पटियाला महाराज को बुलाया और कहा कि मेरे साथ चलो। हम दोनों ने अमृतसर-निवासियों को समझाया कि यह पागलपन है । आज़ाद हिन्दुस्तान, में हम इस तरह के पागलपन का उपयोग नहीं कर सकते । तब महाराजा पटियाला पर और मुझ पर हमारे सब सिक्ख नेताओं की बहुत मुहब्बत थी। आजकल मुझे अफसोस है कि मैं उतनी मुहब्बत नहीं देखता हूँ। उस मुहब्बत का मुझको गर्व है। क्योंकि सिक्खों को मैं इस बात का विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि उनका सब से बड़ा दोस्त और सबसे अधिक हित चाहनेवाला मैं ही हूँ। आज तो मैं आप लोगों से अपील करने के लिए आया हूँ कि यह आपस में लड़ने का समय नहीं है । अभी बड़ी-बड़ी मुसीबतें हमारे सामने आ सकती हैं। अगर हमारा जहाज किनारे पर आ कर डूब जाएगा, तो हम खुदा के सामने, मुल्क के सामने, कौम के सामने, बड़े गुनाहगार बन जाएंगे। तो मैं आपको अमृतसर की घटना सुना रहा था। तब सब सिखों ने मेरा साथ दिया था। मैंने तब उन से कहा था कि हम को एक रास्ता करने के लिए और मुसलमानों को जाने देने के लिए फौज का उपयोग करना पड़े, पुलिस का उपयोग करना पड़े और आप पहलवान लोग हमारे किसी काम न आएँ, जिनसे हमारा लश्कर बनता है, हमारी फौज बनती है, हमारे सिपाही बनते हैं, यह --