पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भारत की एकता का निर्माण सब से पहले आम जनता में लोकमान्य तिलक ने प्रवेश किया। उन्होंने समझ लिया कि जब तक हम जनता को साथ न लें, तब तक यह काम होने वाला नहीं है । सब से पहले लोकमान्य ने ही यह काम शुरू किया कि जनता को साथ लिया जाए। बहुत सालों तक लोकमान्य ने बहुत कष्ट उठाया और राष्ट्र की शक्ति को संगठित किया। उनकी तपश्चर्या सफल हुई और जब उनका देहान्त हुआ, तब महात्मा गांधी जी ने मुल्क के सामने एक बात रक्खी कि हमारा यह धर्म है और हमें आज यह प्रतिज्ञा करनी है कि लोकमान्य का जो काम बाकी रह गया है, उसे हम परिपूर्ण करेंगे। उन्होंने यह प्रतिज्ञा निभाई। जब से महात्मा गान्धी हमारे नेता बने, तभी से उन्होंने कहा कि हमारे पास कोई हथियार नहीं, तो उससे क्या आता जाता है ? अगर हम सरकार को, परदेसी सल्तनत को, उसका राज्य चलाने में सहयोग नहीं देंगे तो हमारे सह- योग के बिना वह राज नहीं चला सकते हैं। यह सब से बड़ी बात थी। इस चीज़ से हमारे देश में बहुत ज्यादा शक्ति पैदा हुई और दिन-पर-दिन वह बढ़ती गई । अब यह जो शक्ति बढ़ती गई, वह यहां तक पहुँच गई कि यहां जो परदेसी सल्तनत थी, उनको लगा कि अब इधर रहना मुश्किल है । एक ही तरीके से वे यहां रह सकते हैं कि यहां हिन्दू मुसलमान दोनों के बीच में झगड़ा कराएँ। तो हिन्दू मुसलमान के बीच झगड़ा पैदा हुआ। उसमें उनका तो स्वार्थ था। अपने राज्य की सलामती के लिए और राज्य करने के सुभीते के लिए उन्होंने यह सब किया। लेकिन हमारी यह बेवकूफी थी कि हम लड़े। आज अब उस झगड़े में पड़ने की कोई जरूरत रह नहीं गई। क्योंकि आखिर लड़ते-झगड़ते हमने फैसला किया कि भई, हम एक साथ नहीं रह सकते और जब तक हमारा आपस का फैसला नहीं हो जाता, तब तक तीसरी ताकत को हटा नहीं सकते और जमाने की सब से बड़ी जरूरत यह है कि इस तीसरी ताकत को हटाओ। मुल्क को पर- देसियों के हाथ से निकालो और गुलामी में से निकल जाओ । पीछे अपने आप सब रास्ता निकल आएगा । इसलिए हमने आपस में फैसला किया कि मुल्क को बांट दो । वह हमने कबूल कर लिया और हम अलग हो गए। इस तरह अलग होने में जितनी बुराइयां आनेवाली थीं, वे सब आई। जो बुराइयां आई थीं, वे अब हट गई है। लेकिन एक बुराई हट जाती है, तो उसमें से दूसरी बुराई निकलती है। आज हमारे देश में एक भावना पैदा हुई