पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१७४

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चौपाटी, बम्बई उस समय का ख्याल करता हूँ तो मेरे दिल में कोई पश्चात्ताप नहीं होता। पहले मेरा ख्याल कभी यह टुकड़े मंजूर करने का नहीं था। लेकिन गवर्नमेंट में आने के बाद जब मैंने तजुर्बा किया तो समझ में आया कि अगर यही हालात रहे तो जिस तरह जो चीज़ है, वैसे ही चलती जाएगी, और हमारे साथ कुछ भी न रहेगा । तब हमने सोच-विचार कर यह काम किया कि पाकिस्तान के नेता लोग ही, जिस पाकिस्तान को एक प्रकार से 'चूहों का खाया हुआ पाकिस्तान' ( मौथ-इटन पाकिस्तान ) कहते थे, उसी पाकिस्तान को हमने मंजूर कर लिया। इसका क्या मतलब है ? वे उसे क्यों कबूल कर लेते हैं ? हमारे दिल में इसका पूरा चित्र था। हमने सोचा कि उनकी नीयत बुरी है और ठीक नहीं है। इस चीज़ को कबूल कर फिर आक्रमण करने की उनकी नीयत है। उसके लिए हमारा पूरा इन्तजाम होना चाहिए और वह भी ऐसा कि जिसमें उन्हें किसी प्रकार की सफलता न मिले। इसके पीछे उनका साथ देनेवाले बाहर के लोग थे। बड़े-बड़े लोग थे, बड़ी-बड़ी शक्तियां । उनके साथ पाकिस्तान कबूल कराने में जो लोग थे, उन्होंने पीछे भी उन का साथ दिया । लेकिन जब हमने यह चीज़ देखी कि उनकी नीयत साफ नहीं है, तो हमने भी पूरी तैयारी की। हमारे पास पांच छ: सौ रियासतें थीं। इतनी रियासतों के अलग-अलग टुकड़े हो जाते, तो देश नष्ट हो जाता। ऐसी हालत थी कि तब हिन्दुस्तान के पास कोई चीज़ न थी। पुरानी हुकूमत ने हमारे साथ एक प्रकार का समझौता किया था, उसमें यह चीज़ थी कि जो सार्वभौम सत्ता थी, वह खत्म हो गई और राजाओं को छूट हो गई कि वह चाहें तो हिन्दुस्तान के साथ रहें या चाहें तो अलंग रहें। इस मामले में हमने यह कभी नहीं सोचा था कि छोटे-छोटे राजा भी हिज मैजस्टी बन जाएंगे। कोई कोई तो अपने को हिज मैजस्टी कहने भी लगे। इस चीज से हमें सबसे बड़ा खतरा था। ईश्वर की कृपा से बहुत से राजाओं में अपने देश के प्रति प्रेम भावना थी। उन्होंने भली बुरी कोई भी बात की हो, पर उनकी नीयत अच्छी थी। हमने भी माना और उन्होंने भी कि हिन्दुस्तान के साथ रहना अच्छा है। जिन लोगों ने बाहर जाने की कोशिश की, उन्होंने धक्का खाया। इस तरह से १५ अगस्त के पहले ही हमने सारे राज्यों को हिन्दुस्तान में शरीक होने के लिए राजी कर लिया। केवल तीन राज्य ही बाहर रहे। एक जूनागढ़, दूसरा हैदराबाद और वीसरा काश्मीर । अब जब झगड़े की कोई और