पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१८७

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१७० भारत की एकता का निर्माण ज़िन्दगी खत्म कर रहा है, दिन-रात काम करने से जिसे जवानी में बुढ़ापा आ रहा है, क्या हम उसका उतना साथ दे रहे हैं, जितना साथ हमें देना चाहिए? यह सब हमें सोचना है। तो में यह कहता हूँ कि जब हम और हमारी गवर्नमेंट चाहती है कि दाम नहीं बढ़ना चाहिए, तो आप का फर्ज है कि नफा छोड़ दो। लड़ाई के ज़माने में आपने बहुत कमाया, अब उसको छिपाना पड़ता है । उसे सामने लाओ तो मुसीबत । तो मेरी सलाह यह है कि आपने पहले जो कमाया, सो तो ठीक है । मगर आज आपको थोड़ा नफा कमाना चाहिए और गवर्नमेंट का साथ देना चाहिए। गवर्नमेंट जितना नफा मुनासिब समझे, वहीं आपको लेना चाहिए। आप ऐसी चीजें बनाएँ, जो कि सब लोगों के काम में आएँ। इससे भाव भी गिर जाएंगे, कपड़े का दाम भी गिरेगा और अनाज का दाम भी गिरेगा। एक चीज़ का दाम गिरने से दूसरी चीज़ का दाम गिरेगा, और दूसरी से तीसरी का । इस तरह से यह चक्कर घूमता है । यह बड़ा विकट प्रश्न है, लेकिन इस प्रश्न को आप ही हल कर सकते हैं और आप ही को इसे हल करना है। गवर्नमेंट को आप अपना दुश्मन न समझे और ऐसा न मानें कि गवर्नमेंट एक तरह से हमको खत्म करना चाहती है। हाँ, खत्म करने में भी में ही पहला हो जाऊँ, यदि कोई मुझे रास्ता बताए कि इनको खत्म करने से मुल्क का फायदा होता है । क्योंकि हमारे पास ऐसी गवर्नमेंट नहीं है, जैसी अंग्रेजों के पास है। उनके पास शिक्षित मैन पावर (शिक्षित जनशक्ति ) है, यदि वे एक इण्डस्ट्री ( व्यवसाय) चलाना चाहें और उसे नैशनलाइज़ ( राष्ट्रीय करण) करना चाहें, तो वे तुरन्त वैसा कर सकते हैं । म अगर नैशनलाइज़ करें, तो बरबाद करके छोड़ देंगे और देखेंगे कि हमने दोनों तरफ से खोया। हमारे पास तो राज चलाने के लिए भी जितने चाहिए, उतने आदमी नहीं हैं। पुरानी सर्विस गई है। हमारे खुद की मिनिस्ट्री और जो प्रान्तों की मिनिस्ट्रियाँ हैं, वे बहुत मुसीबत से काम कर रही है। उसके पास भी अनुभवी आदमी कम है। असली काम चलाने वाले बहुत कम है, बाकी उनकी सलाह से चलते हैं । अनुभव न होने से वे कोई-कोई काम बिगाड़ते भी हैं। स्टेटों ( रियासतों ) के जितने यूनियन बने हैं, उन सभी यूनियनों में तीन आदमी मुझे देने पड़ते हैं, एक सलाहकार, एक फाइनांशियल अडवाइजर ( आर्थिक सलाहकार ) जो फाइनांस ( अर्थ ) की जाँच करता है और सलाह