पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1 चौपाटी, बम्बई लियाकत अली खां फाइनेंस मिनिस्टर ( अर्थ मन्त्री ) थे। उनकी नीयत दूसरी थी। पर उसके बाद जब हमारे पास यह गवर्नमेंट आई, तब हमने इसे मजबूत बनाया । पर केवल कमीशन बनाने से तो काम नहीं चलता? उसके लिए तो एविडेंस ( गवाही ) चाहिए । अब कहाँ छिपा है वह पैसा? एक लम्बी-चौड़ी प्रश्नोत्तरी बना कर उनके पास भेज दी जाए, तो वे अपने वकीलों से उसका जवाब दे देंगे । अब यह काम चलते-चलते दो साल हो गए और कुछ पैसा नहीं मिला । यह काम ऐसा ही चलता रहेगा, तब व्यापारी भी अपना पैसा नहीं निकालेंगे और नोटों के गढ़े छिपे रहेंगे। उधर गवर्नमेंट को पैसा नहीं मिलेगा और इधर कमीशन का खर्चा बढ़ता रहेगा। इससे न कोई काम होगा और न कोई फायदा होगा। इस तरह से हम सब चीजें अगर एक दूसरे से लड़कर करेंगे, तो आखिर देश में कोई काम नहीं होगा। तो मेरी यह सलाह है कि समझदार लोग बैठ कर रास्ता निकालें । समझदार लोग कहाँ होते हैं ? जो धन पैदा करते हैं उनमें बुद्धि होनी चाहिए और जो व्यापारी लोग हैं, उन्हें समझना चाहिए कि इस तरह से देश डूब जाएगा और उनका पैसा भी खत्म हो जाएगा । आपस में विश्वास और सह्योग किए विना इस तरह से काम नहीं चलेगा। तो मेरी सलाह यह है कि मैंने जो कहा, उस पर आप सोचें और अपना रास्ता बदलें । आप देश में शान्ति और प्रेम का वायुमण्डल पैदा करें। मुझे बड़ा अफसोस हुआ, जब मैने सुना कि बम्बई में आज प्रान्त-प्रान्त को अलग करने के लिए आन्दोलन चल रहा है। ऐसे आन्दोलन से जहर फैलता है। क्यों? क्या हम गुजराती और महाराष्ट्रीय जब तक गुलाम थे, तब तक आपस में मुहब्बत से नहीं रहे ? तब हम कभी झगड़ते थे ? यदि आपको अलग महाराष्ट्र चाहिए, तो ले लीजिए। मगर उसका ढंग दूसरा होगा। आप इस तरह से क्यों लड़ते है ? लड़ने की क्या ज़रूरत है ? बैठ कर इंसाफ से काम कर लीजिए। न्याय से काम करनेवाले हमारे देश में बहुत लोग हैं, उनका कमीशन बना दो और वे जिस तरह कहें, काम करो। इस तरह अखबारों में जहर फैलाने, प्रोसेशन्स ( जलूस) निकालने और मीटिंग्स करने की बातें तो तभी तक ठीक थीं, जब तक हम गुलाम थे । अब आजाद होकर हमें अनुभव करना चाहिए कि हम भले है, जबाबदार हैं और अपना राज्य चलानेवाले लोग हैं। हमें इस तरह से क्यों काम करना पड़े? आपका और हमारा, सबका जो लीडर था, वह भी यही L