पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२३६

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विषय समिति, जयपुर २१५ मुझे जो बात सूझी, बह मैंने कही। मैं तो हमेशा शान्ति चाहता हूँ। अगर शान्ति नहीं चाहता, तो जिन्दगी भर गान्धी जी के पास कैसे रहता? मेरे दिल में जो बात आती है, कह देता हूँ । हिन्दू को बुरा लगे, मुसलमान को बुरा लगे, इसकी मुझे परवाह नहीं । जिस भाषा में कहना चाहिए, शायद वह मैं नहीं सीखा हूँ। इतनी कमी जरूर है । दूसरी ज़िन्दगी में इस काम के लिए पुनः मुझे गान्धी जी के पास जाना पड़ेगा। हमने हिन्दुस्तान की जो जवाबदारी ली है, उसे हम छोड़नेवाले नहीं हैं । अगर हमारे बौर्डर ( सीमा ) पर कोई आए, तो उसके लिए हमारी पूरी तैयारी है । यही मैंने ऐसा कहा था । जो कुछ व्यावहारिक हो, वही करने की नीति से हमारा काम होगा। हमारी उम्मीद तो यह है कि जितने लोग पूर्व बंगाल से आए हैं, उनको वापस जाना ही है । डाक्टर चोइथराम और मेहरचन्द के कहने से हमने हाई पावर कमेटी भी बनाई । आपको मेरी यही सलाह रहेगी कि शरणार्थी की सेवा करनी हो, तो सरकार की सहानुभूति प्राप्त करो। जो लोग आज पड़े हैं, उन्होंने कभी हाथ पांव नहीं चलाया। वे शहरों के रहनेवाले हैं। उनका काम कठिन है। केवल प्रान्तों के मन्त्रि-मंडलों से यह काम नहीं होगा । उनको यहाँ रहना है, यहीं धंधा- रोजगार करना है, तो यह सब उनकी सहानुभूति से होगा। मैंने जो बातें कही हैं, वे सब आपके भले के लिए ही कही हैं। कुछ कड़ी बात भी कही हो, पर बुरे दिल से नहीं कहीं।