पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/२५९

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२३६ भारत की एकता का निर्माण प्रदर्शन किया, वह हमारी संस्कृति के खिलाफ और महात्मा गान्धी के शिक्षण के बिलकुल विरुद्ध था। उससे गांधी जी को बहुत कष्ट हुआ। उनकी तपस्या से हमको आजादी तो मिल गई, लेकिन हमने उनका खुद का प्राण लिया । यह बहुत ही बुरा हुआ । इससे दुनिया में हमारी बदनामी हुई, बेइज्जती हुई। लेकिन उनके मरने के बाद हमने कुछ शान्ति पैदा कर ली है। एक तरह से मुल्क में अब कोई खतरा नहीं है। छोटी-मोटी बातें होती हैं, कभी-कभी हमें अपने नवजवानों को जेल में भेजना पड़ता है और दण्ड का उपयोग करना पड़ता है, पुलिस से काम लेना पड़ता है। इससे हमें कष्ट होता है। लेकिन एक तरह से यह जो छोटी-मोटी बातें हो रही हैं, इनसे मुल्क को कोई खतरा नहीं है। इसी प्रकार मुल्क पर बाहर से आक्रमण का भी कोई खतरा नहीं है । तो भी जो पिछला महान युद्ध हुआ, उसकी जो प्रसादी दुनिया भर को मिली, वह बहुत बुरी है । उसमें से हम बचे नहीं है, और यदि हम सावधान न रहें और जिस तरह काम करना चाहिए, उस तरह न करें, तो उससे हमें बहुत बड़ा खतरा है । आप जानते हैं कि हमारे मुल्क में जब राज्य पलटा और हमने सत्ता अपने हाथ में ली, तब, जैसा आपने मानपत्र में बयान किया है, हिन्दुस्तान में छोटी- छोटी करीब-करीब पांच-छ: सौ रियासतें थीं। उनका क्या किया जाए, यह एक बहुत बड़ा विकट प्रश्न था। लेकिन एक बड़ी बात यह हो गई कि सब राजा- महाराजाओं ने बहुत सोच-समझ कर मुल्क का साथ देने का निश्चय किया। मैं बार-बार इन लोगों को इस स्वदेशाभिमान के लिए मुबारकबाद देता आया हूँ। इस मौके पर आज भी मैं यह कहना चाहता हूँ कि राजाओं ने अगर समय को पहचान न लिया होता और देशभक्ति का प्रदर्शन न किया होता, तो उससे देश को वहुत तकलीफ होती। हमारे मुल्क के दो टुकड़े तो हुए ही थे, उससे और भी अनेक टुकड़े हो जाने का बहुत बड़ा खतरा था। और इस प्रकार के टुकड़े करने की पूरी कोशिश भी जारी थी। आपने देखा होगा कि जब हमने राज्यों का संगठन करना शुरू किया, तो उससे पहले ही जूनागढ़ में गड़बड़ शुरू हो गई थी। आप को मालूम ही है कि हिन्दुस्तान में जितनी रियासतें थी, उसकी आधी रियासतें तो अकेले काठियावाड़ में पड़ी हुई थीं। उन्हीं में एक जूनागढ़ स्टेट भी थी। पाकिस्तान ने उसे अपने साथ लेने की कोशिश की और उसका दस्तखत भी ले लिया ।